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    ।।ॐ।।

    राष्ट्र ीय स्वयंसेवक संघ

    प. पू. सरसंघचालक डॉ. श्री मोहन जी भागवत का ववजयादशमी उत्सव

    (रवववार वद. 25 अकू्तबर 2020)

    के अवसर पर वदया उद्बोधन

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    ।।ॐ।।

    राष्ट्र ीय स्वयंसेवक संघ

    प. पू. सरसंघचालक डॉ. श्री मोहन जी भागवत का ववजयादशमी उत्सव

    (रवववार वद. 25 अकू्तबर 2020)

    के अवसर पर वदया उद्बोधन

    आज के इस ववजयादशमी उत्सव के प्रसंग पर हम सब देख रहे हैं वक

    उत्सव संख्या की दृवष्ट् से कम मात्रा में मनाया जा रहा है। कारण भी हम सबको

    पता है। कोरोना वायरस के चलते सभी साववजवनक वियाकलापो ंपर बंधन है।

    गत माचव महीने से देश दुवनयााँ में घटने वाली सभी घटनाओ ंको कोरोना

    महामारी के प्रभाव की चचाव ने मानो ढक वदया है। वपछले ववजयादशमी से अब

    तक बीते समय में चचाव योग्य घटनाएाँ कम नही ं हुईं। संसदीय प्रविया का

    अवलंबन करते हुए 370 कलम को अप्रभावी करने का वनणवय तो ववजयादशमी

    के पहले ही हो गया था। दीपावली के पश्चात् 9 नवंबर को श्रीरामजन्मभूवम के

    मामले में अपना असंवदग्ध वनणवय देकर सवोच्च न्यायालय ने इवतहास बनाया।

    भारतीय जनता ने इस वनणवय को संयम और समझदारी का पररचय देते हुए

    स्वीकार वकया यह मंवदर वनमावण के आरंभ का भूवमपूजन वदनांक 5 अगस्त को

    संपन्न हुआ तब अयोध्या में समारोह स्थलपर हुये कायविम के तथा देशभर मे उस

    वदन के वातावरण के सात्विक, हर्षोल्लावसत परंतु संयवमत, पववत्र व से्नहपूणव

    वातावरण से ध्यान मे आया। देश की संसद में नागररकता अवधवनयम संशोधन

    कानून पूरी प्रविया को लागू करते हुए पाररत वकया गया। कुछ पड़ोसी देशो ंसे

    सांप्रदावयक कारणो ंसे प्रतावड़त होकर ववस्थावपत वकए जाने वाले बनु्ध, जो भारत

    में आयेंगे, उनको मानवता के वहत में शीघ्र नागररकता प्रदान करने का यह

    प्रावधान था। उन देशो ंमें साम्प्रदावयक प्रताड़ना का इवतहास है। भारत के इस

    नागररकता अवधवनयम संशोधन कानून में वकसी संप्रदाय ववशेर्ष का ववरोध नही ं

    है। भारत में ववदेशो ंसे आने वाले अन्य सभी व्यत्वक्तयो ंको नागररकता वदलाने के

    कानूनी प्रावधान, जो पहले से अत्वस्ति में थे, यथावत् रखे गए थे। परनु्त कानून

    का ववरोध करना चाहने वाले लोगो ंने अपने देश के मुसलमान भाइयो ंके मन में

    उनकी संख्या भारत में मयाववदत करने के वलए यह प्रावधान है ऐसा भर वदया।

    उसको लेकर जो ववरोध प्रदशवन आवद हुए उनमें ऐसे मामलो ंका लाभ उठाकर

    वहंसात्मक तथा प्रक्षोभक तरीके से उपद्रव उत्पन्न करने वाले तत्त्व घुस गए। देश

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    का वातावरण तनावपूणव बन गया तथा मनो ंमें साम्प्रदावयक सौहादव पर आाँच आने

    लगी। इससे उबरने के उपाय का ववचार पूणव होने के पहले ही कोरोना की

    पररत्वस्थवत आ गई, और माध्यमो ंकी व जनता की चचाव में से यह सारी बातें लुप्त

    हो गईं। उपद्रवी तत्त्वो ंके द्वारा इन बातो ंको उभार कर ववदे्वर्ष व वहंसा फैलाने के

    र्षडं्यत्र पृष्ठभूवम में चल रहे है। परनु्त जनमानस के ध्यान में आए अथवा उन तत्त्वो ं

    के पृष्ठपोर्षण का काम करने वालो ंको छोड़कर अन्य माध्यमो ंमें उनको प्रवसत्वि

    वमल सके, यह बात कोरोना की चचाव के चटखारो ंमें नही ंहो सकी।

    समू्पणव ववश्व में ही ऐसा पररदृश्य है। परनु्त ववश्व के अन्य देशो ंकी तुलना में

    हमारा भारत संकट की इस पररत्वस्थवत में अवधक अचे्छ प्रकार से खड़ा हुआ

    वदखाई देता है। भारत में इस महामारी की ववनाशकता का प्रभाव बाकी देशो ंसे

    कम वदखाई दे रहा है इसके कुछ कारण हैं। शासन प्रशासन ने तत्परतापूववक इस

    संकट से समस्त देशवावसयो ंको सावधान वकया, सावधानी के उपाय बताए और

    उपायो ंका अमल भी अवधकतम तत्परता से हो इसकी व्यवस्था की। माध्यमो ंने

    भी इस महामारी को अपने प्रसारण का लगभग एक मात्र ववर्षय बना वलया।

    सामान्य जनता में यद्यवप उसके कारण अवतररक्त भय का वातावरण बना,

    सावधानी बरतने में, वनयम व्यवस्था का पालन करने में अवतररक्त दक्षता भी

    समाज ने वदखाई यह लाभ भी हुआ। प्रशासन के कमवचारी, वववभन्न उपचार

    पिवतयो ं के वचवकत्सक तथा सुरक्षा और सफाई सवहत सभी काम करने वाले

    कमवचारी उच्चतम कतवव्यबोध के साथ रुग्ो ंकी सेवा में जुटे रहे। स्वयं को

    कोरोना वायरस की बाधा होने की जोत्वखम उठाकर उन्ोनें वदन-रात अपने घर

    पररवार से दूर रहकर युि स्तर पर सेवा का काम वकया। नागररको ंने भी अपने

    समाज बंधुओ ंकी सेवा के वलए स्वयंसू्फवतव के साथ जो भी समय की आवश्यकता

    थी उसको पूरा करने में प्रयासो ंकी कमी नही ंहोने दी। समाज में कही-ंकही ंइन

    कवठन पररत्वस्थवतयो ंमें भी अपने स्वाथव साधन के वलए जनता की कवठनाईयो ंका

    लाभ लेने की प्रवृवि वदखी। परनु्त बड़ा वचत्र तो शासन-प्रशासन व समाज के

    सहयोग, सहसंवेदना व परस्पर ववश्वास का ही रहा। समाज की मातृशत्वक्त भी

    स्वपे्ररणा से सविय हुई। महामारी के कारण पीवड़त होकर जो लोग ववस्थावपत हो

    गए, वजनको घर में वेतन और रोजगार बंद होने से ववपन्नता का और भूख का

    सामना करना पड़ा, वह भी प्रत्यक्ष उस संकट को झेलते हुए अपने धैयव और

    सहनशीलता को बनाकर रखते रहे। अपनी पीड़ा व कवठनाई को वकनारे करते

    हुए दूसरो ंकी सेवा में वे लग गए ऐसे कई प्रसंग अनुभव में आये। ववस्थावपतो ंको

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    घर पहुाँचाना, यात्रा पथ पर उनके भोजन ववश्राम आवद की व्यवस्था करना, पीवड़त

    ववपन्न लोगो ं के घर पर भोजन आवद सामग्री पहुाँचाना इन आवश्यक कायों में

    समू्पणव समाज ने महान प्रयास वकए। एकजुटता व संवेदनशीलता का पररचय देते

    हुए वजतना बडा संकट था उससे अवधक बडा सहायता का उद्यम खडा वकया।

    व्यत्वक्त के जीवन मे स्वच्छता, स्वास्थ्य तथा रोगप्रवतरोधक शत्वक्त बढानेवाली

    अपनी कुछ परंपरागत आदते व आयुवेद जैसे शास्त्र भी इस समय उपयुक्त वसि

    हुए।

    अपने समाज की एकरसता का, सहज करुणा व शील प्रवृवि का, संकट

    में परस्पर सहयोग के संस्कार का, वजन सब बातो ंको सोशल कैवपटल ऐसा

    अंगे्रजी में कहा जाता है, उस अपने सांसृ्कवतक संवचत सत्त्व का सुखद पररचय

    इस संकट में हम सभी को वमला। स्वतंत्रता के बाद धैयव आत्मववश्वास व

    सामूवहकता की यह अनुभूवत अनेको ंने पहली बार पाई है। समाज के उन सभी

    सेवापे्रमी नावमत, अनावमक, जीववत या बवलदान हो चुके बंधु भवगवनयो ंका,

    वचवकत्सको ंका, कमवचाररयो ंका, समाज के सभी वगों से आने वाले सेवा परायण

    घटको ंको श्रिापूववक शत शत नमन है। वे सभी धन्य है। सभी बवलदावनयो ंकी

    पववत्र सृ्मती में हमारी हावदवक श्रिांजवल है।

    इस पररत्वस्थवत से उबरने के वलए अब दूसरे प्रकार की सेवाओ ं की

    आवश्यकता है। वशक्षा संस्थान वफर से प्रारम्भ करना, वशक्षको ंको वेतन देना,

    अपने पाल्ो ंको ववद्यालय-महाववद्यालयो ंका शुल्क देते हुए वफर से पढ़ाई के

    वलए भेजना इस समय समस्या का रूप ले सकता है। कोरोना के कारण वजन

    ववद्यालयो ंको शुल्क नही ं वमला, उन ववद्यालयो ंके पास वेतन देने के वलए पैसा

    नही ंहै। वजन अवभभावको ंके काम बंद हो जाने के कारण बच्चो ंके ववद्यालयो का

    शुल्क भरने के वलए धन नही ंहै वे लोग समस्या में पड़ गए हैं। इसवलए ववद्यालयो ं

    का प्रारम्भ, वशक्षको ंके वेतन तथा बच्चो ंकी वशक्षा के वलए कुछ सेवा सहायता

    करनी पड़ेगी। ववस्थापन के कारण रोजगार चला गया, नए के्षत्र में रोजगार पाना

    है, नया रोजगार पाना है उसका प्रवशक्षण चावहए, यह समस्या ववस्थावपतो ंकी है।

    लौट कर गए हुए सब ववस्थावपत रोजगार पाते हैं ऐसा नही ंहै। ववस्थावपत के नाते

    चले गए बनु्धओ ंकी जगह पर उसी काम को करने वाले दूसरे बनु्ध सब जगह

    नही ं वमले हैं। अतः रोजगार का प्रवशक्षण व रोजगार का सृजन यह काम करना

    पड़ेगा। इस सारी पररत्वस्थवत के चलते घरो ं में व समाज में तनाव बढ़ने की

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    पररत्वस्थवत उत्पन्न हो जाती है। ऐसी त्वस्थवत में अपराध, अवसाद, आत्महत्या आवद

    कुप्रवृवियााँ ना बढ़ें इसवलए समुपदेशन की व्यापक आवश्यकता है।

    संघ के स्वयंसेवक तो माचव महीने से ही इस संकट के संदभव में समाज में

    आवश्यक सब प्रकार के सेवा की आपूवतव करने में जुट गए हैं। सेवा के इस नए

    चरण में भी वे पूरी शत्वक्त के साथ सविय रहेंगे। समाज के अन्य बनु्ध-बांधव भी

    लमे्ब समय सविय रहने की आवश्यकता को समझते हुए अपने अपने प्रयास

    जारी रखेंगे यह ववश्वास है।

    कोरोना वायरस के बारे में पयावप्त जानकारी ववश्व के पास नही ंहै। यह रूप

    बदलने वाला ववर्षाणु है। बहुत शीघ्र फैलता है। परनु्त हावन की तीव्रता में कमजोर

    है इतना ही हम जानते हैं। इसवलए लमे्ब समय तक इसके साथ रहकर इससे

    बचना और इस बीमारी से तथा उसके आवथवक एवम सामावजक पररणामो ं से

    अपने समाज बनु्धओ ंको बचाने का काम करते रहना पड़ेगा। मन में भय रखने

    की आवश्यकता नही,ं सजगतापूववक सवियता की आवश्यकता है। अब सब

    समाज व्यवहार प्रारम्भ होने पर वनयम व अनुशासन का ध्यान रखना रखवाना हम

    सभी का दावयि बनता है।

    इस महामारी के ववरुि संघर्षव में समाज का जो नया रूप उभर कर आया

    है, उसके और कुछ पहलू हैं। समू्पणव ववश्व में ही अंतमुवख होकर ववचार करने का

    नया िम चला है। एक शब्द बार-बार सुनाई देता है, ”नू्य नॉमवल।“ कोरोना

    महामारी की पररत्वस्थवत के चलते जीवन लगभग थम सा गया। कई वनत्य की

    वियाएाँ बंद हो गईं। उनको देखते हैं तो ध्यान में आता है वक जो कृवत्रम बातें

    मनुष्य जीवन में प्रवेश कर गई थी ंवे बंद हो गईं और जो मनुष्य जीवन की शाश्वत

    आवश्यकताएाँ हैं, वास्तववक आवश्यकताएाँ हैं वे चलती रही।ं कुछ कम मात्रा में

    चली होगंी लेवकन चलती रही।ं अनावश्यक और कृवत्रम वृवि से जुड़ी हुई बातो ंके

    बंद होने से एक हफे्त में ही हमने हवा में ताजगी का अनुभव वकया। झरने, नाले,

    नवदयो ंका पानी स्वच्छ होकर बहता हुआ देखा। त्वखड़की के बाहर बाग-बगीचो ंमें

    पवक्षयो ंकी चहक वफर से सुनाई देने लगी। अवधक पैसो ंके वलए चली अंधी दौड़

    में, अवधकावधक उपभोग प्राप्त करने की दौड़ में हमने अपने आपको वजन बातो ं

    से दूर कर वलया था, कोरोना पररत्वस्थवत के प्रवतकार में वही बातें काम की होने के

    नाते हमने उनको वफर स्वीकार कर वलया और उनके आनंद का नए वसरे से

    अनुभव वलया। उन बातो ंकी महिा हमारे ध्यान में आ गई। वनत्य व अवनत्य,

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    शाश्वत और तात्कावलक, इस प्रकार का वववेक करना कोरोना की इस पररत्वस्थवत

    ने ववश्व के सभी मानवो ंको वसखा वदया है। संसृ्कवत के मूल्ो ंका महत्त्व वफर से

    सबके ध्यान में आ गया है और अपनी परम्पराओ ंमें देश-काल-पररत्वस्थवत सुसंगत

    आचरण का वफर से प्रचलन कैसे होगा इसकी सोच में बहुत सारे कुटुम्ब पड़े हुए

    वदखाई देते हैं।

    ववश्व के लोग अब वफर से कुटुम्ब व्यवस्था की महिा, पयाववरण के साथ

    वमत्र बन कर जीने का महत्त्व समझने लगे हैं। यह सोच कोरोना की मार की

    प्रवतविया में तात्कावलक सोच है या शाश्वत रूप में ववश्व की मानवता ने अपनी

    वदशा में थोड़ा पररवतवन वकया है यह बात तो समय बताएगा। परनु्त इस

    तात्कावलक पररत्वस्थवत के कारण शाश्वत मूल्ो ंकी ओर व्यापक रूप में ववश्व

    मानवता का ध्यान खीचंा गया है यह बात वनवश्चत है।

    आज तक बाजारो ं के आधार पर समू्पणव दुवनया को एक करने का जो

    ववचार प्रभावी व सब की बातो ंमें था, उसके स्थान पर, अपने अपने राष्ट्र को

    उसकी ववशेर्षताओ ंसवहत स्वस्थ रखते हुए, आंतरराष्ट्र ीय जीवन में सकारात्मक

    सहयोग का ववचार प्रभावी होने लगा है। स्वदेशी का महत्त्व वफर से सब लोग

    बताने लगे हैं। इन शब्दो ंके अपनी भारतीय दृवष्ट् से योग्य अथव क्या हैं यह सोच

    ववचार कर हमको इन शाश्वत मूल्ो ंपरम्पराओ ंकी ओर कदम बढ़ाने पड़ेंगे।

    इस महामारी के संदभव में चीन की भूवमका संवदग्ध रही यह तो कहा ही जा

    सकता है, परंतु भारत की सीमाओ ंपर वजस प्रकार से अवतिमण का प्रयास

    अपने आवथवक सामररक बल के कारण मदांध होकर उसने वकया वह तो समू्पणव

    ववश्व के सामने स्पष्ट् है। भारत का शासन, प्रशासन, सेना तथा जनता सभी ने इस

    आिमण के सामने अड़ कर खड़े होकर अपने स्वावभमान, दृढ़ वनश्चय व वीरता

    का उज्जवल पररचय वदया, इससे चीन को अनपेवक्षत धक्का वमला लगता है। इस

    पररत्वस्थवत में हमें सजग होकर दृढ़ रहना पड़ेगा। चीन ने अपनी ववस्तारवादी

    मनोवृवि का पररचय इसके पहले भी ववश्व को समय-समय पर वदया है। आवथवक

    के्षत्र में, सामररक के्षत्र में, अपनी अंतगवत सुरक्षा तथा सीमा सुरक्षा व्यवस्थाओ ंमें,

    पड़ोसी देशो ंके साथ तथा आंतरराष्ट्र ीय संबंधो ंमें चीन से अवधक बड़ा स्थान प्राप्त

    करना ही उसकी राक्षसी महत्त्वाकांक्षा के वनयंत्रण का एकमात्र उपाय है। इस

    ओर हमारे शासको ंकी नीवत के कदम बढ़ रहे हैं ऐसा वदखाई देता है। श्रीलंका,

    बांग्लादेश, ब्रह्मदेश, नेपाल ऐसे हमारे पड़ोसी देश, जो हमारे वमत्र भी हैं और

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    बहुत मात्रा में समान प्रकृवत के देश हैं, उनके साथ हमें अपने सम्बन्धो ंको अवधक

    वमत्रतापूणव बनाने में अपनी गवत तीव्र करनी चावहए। इस कायव में बाधा उत्पन्न

    करनेवाले मनमुटाव, मतान्तर, वववाद के मुदे्द आवद को शीघ्रतापूववक दूर करने

    का अवधक प्रयास करना पड़ेगा।

    हम सभी से वमत्रता चाहते हैं। वह हमारा स्वभाव है। परनु्त हमारी सद्भावना

    को दुबवलता मानकर अपने बल के प्रदशवन से कोई भारत को चाहे जैसा नचा ले,

    झुका ले यह हो नही ंसकता, इतना तो अब तक ऐसा दुः साहस करनेवालो ंको

    समझ में आ जाना चावहए। हमारी सेना की अटूट देशभत्वक्त व अदम्य वीरता,

    हमारे शासनकतावओ ंका स्वावभमानी रवैया तथा हम सब भारत के लोगो ं के

    दुदवम्य नीवत-धैयव का जो पररचय चीन को पहली बार वमला है, उससे उसके भी

    ध्यान में यह बात आनी चावहए। उसके रवैये में सुधार होना चावहए। परनु्त नही ं

    हुआ तो जो पररत्वस्थवत आएगी उसमें हम लोगो ंकी सजगता, तैयारी व दृढ़ता कम

    नही ंपड़ेगी यह ववश्वास आज राष्ट्र में सववत्र वदखता है।

    राष्ट्र की सुरक्षा व साववभौम सम्प्रभुता को वमलने वाली बाहर की चुनौवतयााँ

    ही ऐसी सजगता तथा तैयारी की मााँग कर रही है ऐसा नही,ं देश में वपछले वर्षव

    भर में कई बातें समानांतर चलती रही,ं उनके वनवहताथव को समझते हैं तो इस

    नाजुक पररत्वस्थवत में समाज की सावधानी, समझदारी समरसता व शासन-

    प्रशासन की तत्परता का महत्त्व सब के ध्यान में आता है। सिा से जो वंवचत रहे हैं

    ऐसे सिा चाहने वाले राजनीवतक दलो ंके पुनः सिा प्रात्वप्त के प्रयास, यह प्रजातंत्र

    में चलने वाली एक सामान्य बात है। लेवकन उस प्रविया में भी एक वववेक का

    पालन अपेवक्षत है वक वह राजनीवत में चलने वाली आपस की स्पधाव है, शतु्रओ ंमें

    चलने वाला युि नही।ं स्पधाव चले, स्वस्थ चले, परंतु उसके कारण समाज में

    कटुता, भेद, दूररयो ंका बढ़ना, आपस में शतु्रता खड़ी होना यह नही ं होना

    चावहए। ध्यान रहें, इस स्पधाव का लाभ लेने वाली, भारत को दुबवल या खत्वित

    बनाकर रखना चाहने वाली, भारत का समाज सदा कलहग्रस्त रहे इसवलए

    उसकी ववववधताओ ंको भेद बता कर, या पहले से चलती आई हुई दुभावग्यपूणव

    भेदो ंकी त्वस्थवत को और ववकट व संघर्षवयुक्त बनाते हुए, आपस में झगड़ा लगाने

    वाली शत्वक्तयााँ, ववश्व में हैं व उनके हस्तक भारत में भी हैं। उनको अवसर देने

    वाली कोई बात अपनी ओर से ना हो, यह वचंता सभी को करनी पड़ेगी। समाज में

    वकसी प्रकार से अपराध की अथवा अत्याचार की कोई घटना हो ही नही,ं

    अत्याचारी व आपरावधक प्रवृवि के लोगो ं पर पूणव वनयंत्रण रहें और वफर भी

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    घटनाएं होती है तो उसमें दोर्षी व्यत्वक्त तुरंत पकडे जाय और उनको कड़ी से

    कड़ी सजा हो, यह शासन प्रशासन को समाज का सहयोग लेते हुए सुवनवश्चत

    करना चावहए। शासन-प्रशासन के वकसी वनणवय पर या समाज में घटने वाली

    अच्छी बुरी घटनाओ ंपर अपनी प्रवतविया देते समय अथवा अपना ववरोध जताते

    समय, हम लोगो ंकी कृवत, राष्ट्र ीय एकात्मता का ध्यान व सम्मान रखकर, समाज

    में ववद्यमान सभी पंथ, प्रांत, जावत, भार्षा आवद ववववधताओ ंका सम्मान रखते हुए

    व संववधान कानून की मयावदा के अंदर ही अवभव्यक्त हो यह आवश्यक है।

    दुभावग्य से अपने देश में इन बातो ंपर प्रामावणक वनष्ठा न रखने वाले अथवा इन

    मूल्ो ंका ववरोध करने वाले लोग भी, अपने आप को प्रजातंत्र, संववधान, कानून,

    पंथवनरपेक्षता आवद मूल्ो ं के सबसे बड़े रखवाले बताकर, समाज को भ्रवमत

    करने का कायव करते चले आ रहे हैं। 25 नवम्बर 1949 के संववधान सभा में वदये

    अपने भार्षण में श्रिेय डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ने उनके ऐसे तरीको ं को

    "अराजकता का व्याकरण"(Grammer of Anarchy) कहा था। ऐसे छद्मवेर्षी

    उपद्रव करने वालो ंको पहचानना व उनके र्षडयंत्रो ंको नाकाम करना तथा

    भ्रमवश उनका साथ देने से बचना समाज को सीखना पड़ेगा।

    ऐसा भ्रम संघ के बारें में वनमावण न हो ंइसीवलए संघ कुछ शब्दो ंका उपयोग

    क्यो ंकरता है अथवा कुछ प्रचवलत शब्दो ंको वकस अथव में समझता है यह जानना

    आवश्यक है। वहन्दुि ऐसा ही एक शब्द है वजसके अथव को पूजा से जोड़कर

    संकुवचत वकया गया है। संघ की भार्षा में उस संकुवचत अथव में उसका प्रयोग नही ं

    होता। वह शब्द अपने देश की पहचान को, अध्यात्म आधाररत उसकी परंपरा के

    सनातन सातत्य तथा समस्त मूल् सम्पदा के साथ अवभव्यत्वक्त देने वाला शब्द है।

    इसवलए संघ मानता है वक यह शब्द भारतवर्षव को अपना मानने वाले, उसकी

    संसृ्कवत के वैवश्वक व सववकावलक मूल्ो ंको आचरण में उतारना चाहने वाले, तथा

    यशस्वी रूप में ऐसा करके वदखानेवाली उसकी पूववज परम्परा का गौरव मन में

    रखने वाले सभी 130 करोड़ समाज बनु्धओ ंको लागू होता है। उस शब्द के

    ववस्मरण से हमको एकात्मता के सूत्र में वपरोकंर देश व समाज से बााँधने वाला

    बंधन ढीला होता है। इसीवलए इस देश व समाज को तोड़ना चाहने वाले, हमें

    आपस में लड़ाना चाहने वाले, इस शब्द को, जो सबको जोड़ता है, अपने

    वतरस्कार व टीका वटप्पणी का पहला लक्ष्य बनाते हैं। इससे कम व्यात्वप्त वाले

    शब्द जो हमारी अलग-अलग वववशष्ट् छोटी पहचानो ं के नाम हैं तथा वहन्दू इस

    शब्द के अंतगवत पूणवतः सम्मावनत व स्वीकायव हैं, समाज को तोड़ना चाहनेवाले

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    ऐसे लोग उन ववववधताओ ंको अलगाव के रूप में प्रसु्तत करने पर जोर देते हैं।

    वहन्दू वकसी पंथ, सम्प्रदाय का नाम नही ंहै, वकसी एक प्रांत का अपना उपजाया

    हुआ शब्द नही ं है, वकसी एक जावत की बपौती नही ं है, वकसी एक भार्षा का

    पुरस्कार करने वाला शब्द नही ं है। वह इन सब वववशष्ट् पहचानो ंको कायम

    स्वीकृत व सम्मावनत रखते हुए, भारत भत्वक्त के तथा मनुष्यता की संसृ्कवत के

    ववशाल प्रांगण में सबको बसानेवाला, सब को जोड़ने वाला शब्द है। इस शब्द पर

    वकसी को आपवि हो सकती है। आशय समान है तो अन्य शब्दो ंके उपयोग पर

    हमें कोई आपवि नही ंहै। परनु्त इस देश की एकात्मता के व सुरक्षा के वहत में,

    इस वहन्दू शब्द को आग्रहपूववक अपनाकर, उसके स्थानीय तथा वैवश्वक, सभी

    अथों को कल्पना में समेटकर संघ चलता है। संघ जब 'वहन्दुस्थान वहन्दू राष्ट्र है'

    इस बात का उच्चारण करता है तो उसके पीछे कोई राजनीवतक अथवा सिा

    कें वद्रत संकल्पना नही ंहोती। अपने राष्ट्र का 'स्व' ि वहंदुि है। समस्त राष्ट्र जीवन

    के सामावजक, सांसृ्कवतक, इसवलए उसके समस्त वियाकलापो ंको वदग्दवशवत

    करने वाले मूल्ो ं का व उनकी व्यत्वक्तगत, पाररवाररक, व्यवसावयक और

    सामावजक जीवन में अवभव्यत्वक्त का, नाम वहन्दू इस शब्द से वनवदवष्ट् होता है। उस

    शब्द की भावना की पररवध में आने व रहने के वलए वकसी को अपनी पूजा, प्रान्त,

    भार्षा आवद कोई भी ववशेर्षता छोड़नी नही ं पड़ती। केवल अपना ही वचवस्व

    स्थावपत करने की इच्छा छोड़नी पड़ती है। स्वयं के मन से अलगाववादी भावना

    को समाप्त करना पड़ता है। वचवस्ववादी सपने वदखाकर, कट्टरपंथ के आधार पर,

    अलगाव को भड़काने वाले स्वाथी तथा दे्वर्षी लोगो ंसे बच कर रहना पड़ता है।

    भारत की ववववधता के मूल में त्वस्थत शाश्वत एकता को तोड़ने का घृवणत

    प्रयास इसी प्रकार, हमारे तथाकवथत अल्पसंख्यक तथा अनुसूवचत जावत जनजावत

    के लोगो ंको, झठेू सपने तथा कपोलकत्वल्पत दे्वर्ष की बातें बता कर चल रहा है।

    ‘भारत तेरे टुकड़े होगें’ ऐसी घोर्षणाएाँ देने वाले लोग इस र्षडं्यत्रकारी मंडली में

    शावमल हैं, नेतृि भी करते हैं। राजनीवतक स्वाथव, कट्टरपन व अलगाव की

    भावना, भारत के प्रवत शतु्रता तथा जागवतक वचवस्व की महिाकांक्षा, इनका एक

    अजीब सत्वम्मश्रण भारत की राष्ट्र ीय एकात्मता के ववरुि काम कर रहा है। यह

    समझकर धैयव से काम लेना होगा। भड़काने वालो ं के अधीन ना होते हुए,

    संववधान व कानून का पालन करते हुए, अवहंसक तरीके से व जोड़ने के ही

    एकमात्र उदे्दश्य से हम सबको कायवरत रहना पड़ेगा। एक दूसरे के प्रवत व्यवहार

    में हम लोग संयवमत, वनयम कानून तथा नागररक अनुशासन के दायरे में,

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    सद्भावनापूणव व्यवहार करते हैं तो ही परस्पर ववश्वास का वातावरण बनता है। ऐसे

    वातावरण में ही ठिे वदमाग से समन्वय से समस्या का हल वनकलता है। इससे

    ववपरीत आचरण परस्पर अववश्वास को बढ़ावा देता है। अववश्वास की दृवष्ट् में

    समस्या का हल आाँखो ंसे ओझल हो जाता है। समस्या का स्वरूप भी समझना

    कवठन हो जाता है। केवल प्रवतविया की, ववरोध की, भय की भावना में

    अवनयंवत्रत वहंसक आचरण को बढ़ावा वमलता है, दूररयााँ और ववरोध बढ़ते रहते

    हैं।

    परस्पर व्यवहार में आपस में हम सब संयवमत व धैयवपूववक व्यवहार रखकर

    ववश्वास को तथा सौहादव को बढ़ावा दे सके, इसवलए सभी को अपनी सबकी एक

    बड़ी पहचान के सत्य को स्पष्ट् स्वीकार करना पड़ेगा। राजनीवतक लाभहानी की

    दृष्ट्ी से ववचार करने की प्रवृिी को दूर रखना पड़ेगा। भारत से भारतीय अलग

    होकर जी नही ंसकते। ऐसे सब प्रयोग पूणव अयशस्वी हुए हैं, यह दृश्य हमारे

    आाँखो ंके सामने वदख रहा है। स्वयं के कल्ाण की बुत्वि हमको एक भावना में

    वमल जाने का वदशावनदेश दे रही है यह ध्यान में लेना होगा। भारत की भाववनक

    एकता व भारत में सभी ववववधताओ ंका स्वीकार व सम्मान की भावना के मूल में

    वहन्दू संसृ्कवत, वहन्दू परम्परा व वहन्दू समाज की स्वीकार प्रवृवि व सवहषु्णता है

    यह ध्यान में रखना पड़ेगा।

    ‘वहन्दू’ इस शब्द का उच्चारण संघ के लगभग प्रते्यक वक्तव्य में होते रहता

    है, वफर भी यहााँ पर वफर एक बार उसकी चचाव इसवलए की जा रही है वक इससे

    सम्बत्वन्धत और कुछ शब्द आजकल प्रचवलत हो रहे हैं। उदाहरणाथव स्वदेशी इस

    शब्द का आजकल बार-बार उच्चारण होता है। इसमें जो स्वि है वही वहन्दुि है।

    उसी हमारे राष्ट्र के सनातन स्वभाव का उद्घोर्ष स्वामी वववेकानंद जी ने,

    अमेररका की भूवम से एक कुटुम्ब के रूप में समू्पणव ववश्व को देखते हुए,

    सववपंथसमन्वय के साथ स्वीकायवता व सवहषु्णता की घोर्षणा के रूप में वकया था।

    महाकवव श्री रववंद्र नाथ ठाकुर ने अपने स्वदेशी समाज में भारत के नवोत्थान की

    कल्पना इसी आधार पर स्पष्ट् रूप से रखी थी। श्री अरववंद ने उसी की घोर्षणा

    अपने उिरपारा के भार्षण में की थी। अट्ठारह सौ सिावन के पश्चात् हमारे देश के

    समस्त आत्ममंथन, वचन्तन तथा समाज जीवन के ववववध अंगो ंमें प्रत्यक्ष सवियता

    का समू्पणव अनुभव हमारे संववधान की प्रस्तावना में गवठत वकया गया है। वह इसी

    हमारे आत्मा की घोर्षणा करता है। उस हमारी आत्मा या स्व के आधार पर, हमारे

    देश के बौत्विक ववचार मंथन की वदशा, उसके द्वारा वकए जाने वाले सारासार

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    वववेक, कतवव्याकतवव्यवववेक के वनकर्ष वनवश्चत होने चावहए। हमारे राष्ट्र ीय मानस

    की आकांक्षाएाँ , अपेक्षाएाँ व वदशाएाँ उसी के प्रकाश में साकार होनी चावहए। हमारे

    पुरुर्षाथव के भौवतक जगत में वकए जाने वाले उद्यम के गंतव्य व प्रत्यक्ष पररणाम

    उसी के अनुरूप होने चावहए। तब और तब ही भारत को स्ववनभवर कहा जायेगा।

    उत्पादन का स्थान, उत्पादन में लगने वाले हाथ, उत्पादन के वववनमय से वमलने

    वाले आवथवक लाभ व उत्पादन के अवधकार अपने देश में रहने चावहए। परनु्त

    केवल मात्र इससे वह कायवपिवत स्वदेशी की नही ंबनती। ववनोबा जी ने स्वदेशी

    को स्वावलम्बन तथा अवहंसा कहा है। स्वगीय दिोपंत ठें गड़ी जी ने कहा वक

    स्वदेशी केवल सामान व सेवा तक सीवमत नही।ं इसका अथव राष्ट्र ीय

    आत्मवनभवरता, राष्ट्र ीय सम्प्रभुता तथा बराबरी के आधार पर आंतरराष्ट्र ीय सहयोग

    की त्वस्थवत को प्राप्त करना यह है। भववष्य में हम स्वावलंबी बन सके इसवलये

    आज बराबरी की त्वस्थवत तथा अपनी शतौं के आधारपर आंतरराष्ट्र ीय व्यापाररक

    लेनदेन मे हम वकन्ी कम्पवनयो ंको बुलाते अथवा हमारे वलये अपररवचत तकनीक

    लाने के वलये कुछ सहूवलयत देते है तो, इसकी मनाई नही ंहै। परनु्त यह सहमवत

    का वनणवय होता है।

    स्वावलम्बन में स्व का अवलम्बन अवभपे्रत है। हमारी दृवष्ट् के आधार पर

    हम अपने गंतव्य तथा पथ को वनवश्चत करते हैं। दुवनया वजन बातो ंके पीछे पड़

    कर व्यथव दौड़ लगा रही है, उसी दौड़ में हम शावमल होकर पहले िमांक पर

    आते हैं तो इसमें परािम और ववजय वनवश्चत है। परनु्त स्व का भान व सहभाग

    नही ंहै। उदाहरणाथव कृवर्ष नीवत का हम वनधावरण करते हैं, तो उस नीवत से हमारा

    वकसान अपने बीज स्वयं बनाने के वलए स्वतंत्र होना चावहए। हमारा वकसान अपने

    को आवश्यक खाद, रोगप्रवतकारक दवाइयााँ व कीटनाशक स्वयं बना सके या

    अपने गााँव के आस-पास पा सके यह होना चावहए। अपने उत्पादन का भंडारण व

    संस्करण करने की कला व सुववधा उसके वनकट उपलब्ध होनी चावहए। हमारा

    कृवर्ष का अनुभव गहरा व्यापक व सबसे लम्बा है। इसवलये उसमे से कालसुसंगत

    अनुभववसि परंपरागत ज्ञान तथा आधुवनक कृवर्षववज्ञान से देश के वलये उपयुक्त

    व सुपरीवक्षत अंश, हमारे वकसान को अवगत करानेवाली नीवत हो।ं वैज्ञावनक

    वनरीक्षण तथा प्रयोगो ंको अपने लाभ की सुववधा के अनुसार पररभावर्षत करते

    हुए, नीवतयो ंको प्रभाववत करके लाभ कमाने के कापोरेट जगत के चंगुल में न

    फाँ सते हुए, अथवा बाजार या मध्यस्थो ंकी जकड़न के जाल से अप्रभाववत रहकर,

    अपना उत्पादन बेचने की उसकी त्वस्थवत बननी चावहए। तब वह नीवत भारतीय

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    दृवष्ट् की याने स्वदेशी कृवर्ष नीवत मानी जाएगी। यह काम आज की प्रचवलत कृवर्ष

    व आवथवक व्यवस्था में िररत हो ना सके यह संभव है, उस त्वस्थवत में कृवर्ष

    व्यवस्था व अथवव्यवस्था को इन बातो ंके वलए अनुकूलता की ओर ले जाने वाली

    नीवत होनी पड़ेगी, तब वह स्वदेशी नीवत कहलाएगी।

    अथव, कृवर्ष, श्रम, उद्योग तथा वशक्षा नीवत में स्व को लाने की इच्छा रख कर

    कुछ आशा जगाने वाले कदम अवश्य उठाए गए हैं। व्यापक संवाद के आधार पर

    एक नई वशक्षा नीवत घोवर्षत हुई है। उसका संपूणव वशक्षा जगत से स्वागत हुआ है,

    हमने भी उसका स्वागत वकया है। Vocal for Local यह स्वदेशी संभावनाओ ं

    वाला उिम प्रारंभ है। परनु्त इन सब का यशस्वी वियान्वयन पूणव होने तक

    बारीकी से ध्यान देना पडेगा। इसीवलये स्व या आत्मतत्त्व का ववचार इस व्यापक

    पररपे्रक्ष्य में सबने आत्मसात करना होगा, तभी उवचत वदशामें चलकर यह यात्रा

    यशस्वी होगी।

    हमारे भारतीय ववचार में संघर्षव में से प्रगवत के तत्त्व को नही ंमाना है।

    अन्याय वनवारण के अंवतम साधन के रूप मे ही संघर्षव मान्य वकया गया है।

    ववकास और प्रगवत हमारे यहााँ समन्वय के आधार पर सोची गई है। इसवलए

    प्रते्यक के्षत्र स्वतंत्र व स्वावलंबी तो बनता है, परनु्त आत्मीयता की भावना के

    आधार पर, एक ही राष्ट्र पुरुर्ष के अंग के रूप में, परस्पर वनभवरता से चलने वाली

    व्यवस्था बनाकर, सभी का लाभ सभी का सुख साधता है। यह आत्मीयता व

    ववश्वास की भावना, नीवत बनाते समय, सभी सम्बत्वन्धत पक्षो ं व व्यत्वक्तयो ं से

    व्यापक ववचार-वववनमय होकर, परस्पर सकारात्मक मंथन से सहमवत बनती है,

    उस से वनकलती है। सबके साथ संवाद, उसमें से सहमत, उसका पररणाम

    सहयोग, इस प्रविया के कारण ववश्वास, यह अपने आत्मीय जनो ंमें, समाज में

    यश, शे्रय आवद प्राप्त करने की प्रविया बताई गई है।

    समानो मंत्रः सममम ः समानी समानं मनः सहमित्तमेषाम् ।

    समानं मंत्रममिमंत्रये वः समानेन वो हमवषा जुहोमम।।

    सौभाग्य से ऐसा ववश्वास सभी के मन में सभी ववर्षयो ंपर उत्पन्न करने की

    क्षमता आज के राजनीवतक नेतृि के पास होने की आशा व अपेक्षा की जा

    सकती है। समाज व शासन के बीच प्रशासन का स्तर पयावप्त संवेदनशील व

    पारदशी होने से यह कायव और अवधक अच्छी तरह सम्पन्न वकया जा सकता है।

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    सहमवत के आधार पर वकए गए वनणवय वबना पररवतवन के तत्परता पूववक जब लागू

    होते हुए वदखते हैं तब यह समन्वय और सहमवत का वातावरण और मजबूत होता

    है। घोवर्षत नीवतयो ंका वियान्वयन आखरी स्तर तक वकस प्रकार हो रहा है

    उसके बारे में सजगता व वनयंत्रण सदा ही आवश्यक रहता है। नीवत वनमावण के

    साथ-साथ उसके वियान्वयन में भी तत्परता व पारदवशवता रहने से नीवत में

    अपेवक्षत पररवतवनो ंके लाभो ंको पूणव मात्रा में पा सकते हैं।

    कोरोना की पररत्वस्थवत में नीवतकारो ंसवहत देश के सभी ववचारवान् लोगो ं

    का ध्यान, अपने देश की आवथवक दृवष्ट् में, कृवर्ष, उत्पादन को ववकें वद्रत करने वाले

    छोटे व मध्यम उद्योग, रोजगार सृजन, स्वरोजगार, पयाववरण वमत्रता तथा उत्पादन

    के सभी के्षत्रो ंमें शीघ्र स्ववनभवर होने की आवश्यकता के तरफ आकवर्षवत वकया है।

    इन के्षत्रो ंमें कायवरत हमारे छोटे बडे उद्यमी, वकसान, आवद सभी इस वदशा में

    आगे बढ़कर देश के वलए सफलता पाने के वलए उतु्सक हैं। बड़े देशो ंकी प्रचंड

    आवथवक शत्वक्तयो ं से स्पधाव में शासन को उन्ें सुरक्षा कवच देना होगा। कोरोना

    की पररत्वस्थवत के चलते छः मवहनो ंके अंतराल के बाद वफर खड़ा होने के वलए

    सहायता देने के साथ ही वह पहुाँच रही है यह भी सुवनवश्चत करना होगा।

    हमारे राष्ट्र के ववकास व प्रगवत के बारे में हमें अपनी भाव भूवम को आधार

    बनाकर, अपनी पृष्ठभूवम में, अपने ववकास पथ का आलेखन करना पड़ेगा। उस

    पथ का गंतव्य हमारे राष्ट्र ीय संसृ्कवत व आकांक्षा के अनुरूप ही होगा। सबको

    सहमवत की प्रविया में सकारात्मक रूप से हम सहभागी करा लें, अचूक,

    तत्परतापूणव और जैसा वनश्चय होता है वबलकुल वैसा, योजनाओ ंका वियान्वयन

    सुवनवश्चत करें। आखरी आदमी तक इस ववकास प्रविया के लाभ पहुाँचते हैं,

    मध्यस्थो ंव दलालो ंके द्वारा लूट बंद होकर जनता जनादवन सीधा ववकास प्रविया

    में सहभागी व लाभात्वन्वत होते है इसको देखेंगे, तभी हमारे स्वप्न सत्यता में उतर

    सकते हैं, अन्यथा उनके अधूरे रह जाने का खतरा बना रहता है।

    उपरोक्त सभी बातो ंका महत्त्व है। परनु्त राष्ट्र ोत्थान की सभी प्रवियाओ ंमें

    समाज का दावयि गुरुतर व मूलाधार का स्थान रखता है। कोरोना की प्रवतविया

    के रूप में ववश्व में जागृत हुआ 'स्व' के महि का, राष्ट्र ीयता का, सांसृ्कवतक मूल्ो ं

    की महिा का, पयाववरण का ववचार व उसके प्रवत कृवत की तत्परता, कोरोना की

    पररत्वस्थवत ढीली होते होते मंद होकर, वफर से समाज का व्यवहार इन सब शाश्वत

    महत्त्व की उपकारक बातो ंकी अवहेलना का न बन जाए। यह तभी सम्भव होगा

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    जब समू्पणव समाज वनरंतर अभ्यासपूववक इसके आचरण को सातत्यपूणव और

    उिरोिर आगे बढ़ने वाला बनाएगा। अपने छोटे-छोटे आचरण की बातो ं में

    पररवतवन लाने का िम बनाकर, वनत्य इन सब ववर्षयो ं के प्रबोधन के उपिम

    चलाकर, हम अपने आदत के इस पररवतवन को कायम रखकर आगे बढ़ा सकते

    हैं। प्रते्यक कुटुम्ब इसकी इकाई बन सकता है। सप्ताह में एक बार हम अपने

    कुटुम्ब में सब लोग वमलकर श्रिा अनुसार भजन व इच्छा अनुसार आनन्दपूववक

    घर में बनाया भोजन करने के पश्चात्, दो-तीन घण्ो ंकी गपशप के वलए बैठ जाएाँ

    और उसमें इन ववर्षयो ंकी चचाव करते हुए उसके प्रकाश में, पूरे पररवार में

    आचरण का छोटा सा संकल्प लेकर, अगले हफे्त की गपशप तक उसको

    पररवार के सभी सदस्यो ंके आचरण में लागू करने का कायव, सतत कर सकते हैं।

    चचाव ही आवश्यक है, क्योवंक ववर्षय या वसु्त नई हो या पुरानी, उसका नयापन या

    पुरानपन उसकी उपयुक्तता वसि नही ंकरता। हर बात की परीक्षा करके ही

    उसकी उपयुक्तता व आवश्यकता को समझना चावहए ,ऐसा तरीका हमारे यहााँ

    बताया गया है-

    सं ः परीक्ष्यान्य रद् िजने्त मूढः परप्रत्ययनेय बुद्धः ।

    पररवार में अनौपचाररक चचाव में ववर्षय वसु्त के सभी पहलुओ ंका ज्ञान,

    सारासारवववेक से उसके वास्तववक आवश्यकता का ज्ञान तथा उसको अपनाने

    का अथवा छोड़ने का मन बनता है, तब पररवतवन समझबूझ कर व से्वच्छा से

    स्वीकार होने के कारण शाश्वत हो जाता है।

    प्रारम्भ में हम अपने घर में रखरखाव, साजसज्जा, अपने कुटुम्ब की गौरव

    परम्परा, अपने कुटुम्ब के कालसुसंगत रीवतररवाज, कुलरीवत की चचाव कर सकते

    हैं। पयाववरण का ववर्षय सववस्वीकृत व सुपररवचत होने से अपने घर में पानी को

    बचाकर उपयोग, प्लात्विक का पूणवतया त्याग व घर के आंगन में, गमलो ं में

    हररयाली, फूल, सब्जी बढ़ाने से लेकर वृक्षारोपण के उपिम कायविम तक कृवत

    की चचाव भी सहज व पे्ररक बन सकती है। हम सभी रोज स्वयं के वलए तथा

    कुटुम्ब के वलए समय व आवश्यकतानुसार धन का व्यय करते हुए कुछ ना कुछ

    उपयुक्त कायव करते हैं। रोज समाज के वलए वकतना समय व वकतना व्यय लगाते

    हैं यह चचाव के उपरांत कृवत के प्रारम्भ का ववर्षय हो सकता है। समाज के सभी

    जावत भार्षा प्रांत वगों में हमारे वमत्र व्यत्वक्त व वमत्र कुटुम्ब हैं वक नही?ं हमारा तथा

    उनका सहज आने-जाने का, साथ उठने-बैठने, खाने-पीने का सम्बन्ध है वक नही,ं

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    यह सामावजक समरसता की दृवष्ट् से बहुत महत्त्वपूणव आत्मवचंतन कुटुम्ब में हो

    सकता है। इन सभी ववर्षयो ंमें समाज में चलने वाले कायविम, उपिम व प्रयासो ं

    में हमारे कुटुम्ब का योगदान हमारी सजगता व आग्रह का ववर्षय हो सकता है।

    प्रत्यक्ष सेवा के कायविम उपिमो ं मे - जैसे रक्तदान, नेत्रदान आवद - सहभागी

    होना अथवा समाज का मन इन कायों के वलये अनुकूल बनाना ऐसी बातो ंमें

    अपना कुटुम्ब योगदान दे सकता है।

    ऐसे छोटे-छोटे उपिमो ं के द्वारा व्यत्वक्तगत जीवन में सद्भाव, शुवचता,

    संयम, अनुशासन सवहत मूल्ाधाररत आचरण का ववकास कर सकते हैं। उसके

    पररणाम स्वरूप हमारा सामूवहक व्यवहार भी नागररक अनुशासन का पालन

    करते हुए परस्पर सौहादव बढ़ाने वाला व्यवहार हो जाता है। प्रबोधन के द्वारा

    समाज के सामान्य घटको ंका मन अपनी अंतवनववहत एकात्मता का आधारस्वर

    वहन्दुि को बना कर चले, तथा देश के वलए पुरुर्षाथव में अपने राष्ट्र ीय स्वरूप का

    आत्मभान, सभी समाज घटको ं की आत्मीयतावश परस्पर वनभवरता, हमारी

    सामूवहक शत्वक्त सब कुछ कर सकती है यह आत्मववश्वास तथा हमारे मूल्ो ंके

    आधार पर ववकास यात्रा के गंतव्य की स्पष्ट् कल्पना जागृत रहती है तो, वनकट

    भववष्य में ही भारतवर्षव को समू्पणव दुवनया की सुख शांवत का युगानुकूल पथ

    प्रशस्त करते हुए, बनु्धभाव के आधार पर मनुष्य मात्र को वास्तववक स्वतंत्रता व

    समता प्रदान कर सकने वाला भारतवर्षव इस नाते खड़ा होता हुआ हम देखेंगे।

    ऐसे व्यत्वक्त तथा कुटुम्बो ंके आचरण से समू्पणव देश में बंधुता, पुरुर्षाथव तथा

    न्यायनीवतपूणव व्यवहार का वातावरण चतुवदवक खड़ा करना होगा। यह प्रत्यक्ष में

    लाने वाला कायवकतावओ ंका देशव्यापी समूह खड़ा करने के वलए ही 1925 से

    राष्ट्र ीय स्वयंसेवक संघ कायव कर रहा है। इस प्रकार की संगवठत त्वस्थवत ही समाज

    की सहज स्वाभाववक स्वस्थ अवस्था है। शतको ंके आिमणग्रस्तता के अंधकार

    से मुक्त हुए अपने इस स्वतंत्र राष्ट्र के नवोदय की पूवव शतव यह समाज की स्वस्थ

    संगवठत अवस्था है। इसी को खड़ा करने के वलए हमारे महापुरुर्षो ंने प्रयत्न वकए।

    स्वतंत्रता के पश्चात् इस गंतव्य को ध्यान में लेकर ही उसको युगानुकूल भार्षा में

    पररभावर्षत कर उसके व्यवहार के वनयम बताने वाला संववधान हमें वमला है।

    उसको यशस्वी करने के वलए पूरे समाज में यह स्पष्ट् दृवष्ट्, परस्पर समरसता,

    एकात्मता की भावना तथा देश वहत सवोपरर मानकर वकया जाने वाला व्यवहार

    इस संघ कायव से ही खड़ा होगा। इस पववत्र कायव में प्रामावणकता से वनस्वाथव बुत्वि

    से व तन-मन-धनपूववक देशभर में लक्षाववध स्वयंसेवक लगे हैं। आपको भी उनके

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    सहयोगी कायवकताव बनकर देश के नवोत्थान के इस अवभयान के रथ में हाथ

    लगाने का आवाहन करता हुआ मैं अपने शब्दो ंको ववराम देता हूाँ।

    "प्रश्न बहु से उत्तर एक कदम ममलाकर बढ़े अनेक।

    वैिव के उतंु्तग मिखर पर सिी मदिा से िढ़े अनेक।।"

    ।। िार मा ा की जय।।