चंदाभाई चांदनी - Hindustan Books · चोर बोल, "बाप...

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ििजुभाई की बाल -क थाए ं : 3 चंदाभाई की चांदनी लेििका िि जुभाई बध ेका अनुवादक का ििनाथ ििव ेदी

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ििज ुभाई क ी बाल -कथाए ं : 3

चंदाभाईकी

चा ंदनीलेििका

ििजुभाई बध ेका

अनुवादक

का ििनाथ ििव ेदी

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पकािकयिपाल जैन

मिंी,ससता सािितय मणडलएन-७७, कनॉट सकक स, नई िदलली-११०००१

तीसरी बार : १८८८ पितयॉ ँ : १०००मूलय : र० १२.००

मुदकआई. बी.एच.िपनटसक

मानसरोबर पाकक , िािदरा,िदलली

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पकािकीय

सव 0 ििजुभाई बधेका ििका-केि की एक मिानिवभूित थे। अपने पयोिो और अनुभव के आधारपर उनिोने िनशय िकया था िकम बचचो के सिीिवकास के िलए, उनिे देि का उतम नाििरकबनाने के िलए,िकस पकार की ििका देनी चाििएऔर िकस ढंि से।इसी धयेय को सामने रिकर उनिोने बिुत-सीबालोपयोिी किािनयां िलिीं। ये किािनयां िुजरातीदस पुसतको मे पकािित िुई िै। इनिीं किािनयांिमने पांच पुसतको मे पकािित िकया िै।

इन किािनयो की बालक चाव से पढे, उनिे पढतेया सुनते समय, वे उसमे लीन िो जाय,ं इस बातका लेिक ने पूरा धयान रिा िै। सभंव- असंभव,

सवाभािवक-असवाभािवक, इसकी िचनता लेिक नेनिीं की। यिी कारण िै िक इन किािनयो कीबिुत-सी बाते अनिोनी-सी लिती िै। पर बचचो केिलए तो किािनयो मे रस पधान िोता िै, कुतूिलमितव रिता िै, और ये दोनो िी चीजे इन किािनयो मेभरपूर िै।ििजुभाई के जनम-िताबदी बष क के उपलबध मेइन किािनयो को पाठको को सलुभ िकया िया था।िमे पूरा िवशास िै िक पाठक, िविेषकर िमारे बालक,

इन किािनयो को चाव से पढेिे और इनसे ििका गिणकरेिे।

मंिी

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ििकक भाई -बिन ो स े

लीिजए,ये बाल-कथाएं लीिजए। आप इनिेबालको को सुनाते रििए। बालक इनको ििुी-िुिीऔर बार-बार सुनेिे। आप इनिे सनुदर ढंि सेकििए, कथा-किानी के अपने ढंि से कििए,

िाव-भाव के साथ कििए, रस-पूवकक कििए। कभी-कभी इनको पढकर भी सुनाइए। बालको की उमर को धयान मे रिकर िी कथा पसनद कीिजए। भाईमेरे! एक काम आप कभी मत कीिजए। ये कथाएंबालको को रटनी न पडे, दोिरानी ने पडे, परीकाके िलए पढनी ने पडे, इसका पूरा धयान आप जरर रििए। आप सवयं अनुभव कीिजए िक ये कथाएं जादूकी लकडी कयो िै? यिद आपको बालको के साथपेम का नाता जोडना िै, तो उसका शीिणेि कथा से कीिजए। यिद आपको बालको की अिभमुितापाप करनी िै, तो कथा भी उसका एक साधनरिै। बडे पिणडत बनकर कथा कभी मत कििए।कथा के दारा जान मत दीिजए। तटसथ रिकर भीकथा मत कििए। कथा मे आप सवयं बिले औरबचचो को भी बिलाइए। --ििजुभाई

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ये क थाए ं

इन छोटी-छोटी पुसतको मे जो बाल-कथाएं दी िई िै, उनमे एक कला िछपी िै, अदशय रप से ताििवक बोध भरा िुआ िै, लोक सवभाव का मूकवणनक िै, और ये मगुध बालको के िलए आिुतोषआहाद से ओत-पोत िै। इसी कारण से ये ििककोके िलए उनके उतम सिायक का काम देने वालीिै। अनुभवी और उतसािी ििकको से पाथनक ा यिीिै िक वे इन कथाओं को सुधारने का पयत न करे।इन कथाओं को वे धयान-पूवकक पढे। पढ-पढकरइनसे तदाकार बने, और ििर उनिे जो सिूित क िो,उसे वे बालको के सामने रिे। ये कथाएं िासोकसंयम का पालन निीं करतीं, पर इनमे अपना एकसवाभािवक संयम िै। पापी का िधककार िकये िबनािी ये पाप–पणुय के भेद को सपष करती िै औरसमाज-सेवा के ऊंचे आदिो की झांकी पसतुत करकेिवशवयापी पेम उतपनन करती िै। ये कथाएंयािियो की तरि देि-िवदेि मे घूमती िै औरजिां भी पिंुचती िै, विां पेम-धम क की सथापना करती िै।

काका काल ेल

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कया , किा ं ?

१. तीन लोक का टीपना२. बावला-बावली३. सूप-से कान वाला राजा४. सोनबाई और बिुला५. आमने-सामने की िींचातानी६. कुता और चीता७. िडबड-िडबड िोदते िै८. िंस और कौआ९. नानी के घर जाने दो१०. लोभी दरजी११. मिर और िसयार१२. िटडडा जोिी१३. राजा, मै तो बडभािी!१४. बिनया और चोर१५. ििलिरी बाई१६. अललम तललम करता िंू१७. चनदाभाई की चांदनी

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एक था िकसान। उसने एक िेत जोता। िेत मे जवार बोई। जवार मे बडे-बडे भुटटे लिे। िकसान ने किा, "अब एक रिवाला रिना िोिा। वि िदनभर पिकयो को उडायिा और रात मे रिवाली करेिा।

रिवाला रात मे रिवाली करता और िदन मे पिकयो को उडाता रिता। इस तरि काम करते-करते कई िदन बीत िए। एक रात चोर रिवाला रिा। चोरो ने दसूरे रिवाले को भी मार डाला और भटुटे चुरा िलये।

िकसान सोचने लिा—‘अब मै कया करं? यि तो बडी मुसीबत िडी िो िई। इसका कोई इलाज तो करना िी िोिा।‘ सोचते-सोचते िकसान को केििल की याद आ िई। केिपाल तो बडे िी चमतकारी और पतापी देवता िै। याद करते िी सामने आ िए। उनिोने पछूा, "मेरे सेवक पर कया सकंट आया िै?"

िकसान ने किा, "मिाराज, आपकी कृपा से जवार मे बडे-बडे भुटटे लिे िै, पर चोर इनिे यिां रिने किां दे रिे िै! चोरो ने दो रिवालो को तो मार डाला िै। मिाराज,

अब आप की इसका कोई इलाज कीिजए। कोई रासता िदिाइये।"केिपाल बोले, "भयैा! आज से तमुिे कोई िचनता निीं करनी िै। िेत मे एक

मचान बधंवा लो और विां एक बांस िाड दो। ििर देिते रिो।" केिपाल ने जो किा, सो िकसान ने कर िदया।

िाम िुई। केििल तो एक िचिडया का रप रिकर बासं पर बैठ िए। आधी रात िुई चोर आए। चोर चारो ओर घूमने-ििरने लिे। इसी बीच िचिडया बोली:

ओ, घूमते-ििरते चोरो!तीन लोक का टीपना और तीसरा रिवाला।चोर चौके। बोल, "अरे यि कौन बोल रिा िै?" इधर-उधर देिा, तो कोई िदिाई

निीं पडा। चोरो ने भुटटे काटना िुर कर िदया। तभी िचिडया ििर बोली:

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ओ, काटने-वाटने वालो चोरा!तीन लोक का टीपना और तीसरा रिवाला।चोरो ने चारो तरि देिा, पर कोई िदिाई निीं पडा। उनिोने भुटटो की िठरी

बांध ली। िचिडया ििर बोलीओ, बांधने-वाधने वाले चोरो!तीन लोक का टीपना और तीसरा रिवाला।चोर इधर-उधर देिने लिे। उनिोन िचिडया को बोलते देि िलया। पतथर िेक-

िेककर वे उसे मारने लिे। इस पर िचिडया बोली:ओ, मारने वाले चोरो!तीन लोक का टीपना और तीसरा रिवाला।चोरो ने बांस पर बैठी िचिडया को नीचे उतार िलया। नीचे उतरते-उतरते

िचिडया ििर बोली: ओ, उतारने वाले चोरो!तीन लोक का टीपना और तीसरा रिवाला।

चोर िचिडया पर टूट-पडे और उसे पीटने लिे। िचिडया ििर बोली:ओ पीटने वाले चोरो!तीन लोक का टीपना और तीसरा रिवाला।

इस पर चोर इतने िसुसा िुए िक वे िचिडया को काटने लिे। िचिडया ििर भी बोली:ओि ्काटने वाले चोरो!तीन लोक का टीपना और तीसरा रिवाला।

चोरो ने आि जलाई और िचिडया को भूनने लिे। िचिडया बोली:ओ, भुनने वाले चोरो!तीन लोक का टीपना और तीसरा रिवाला।

ििर सब चोर िाने बैठे। जयो िी उनिोने िचिडया के टुकडे मुिं मे रिे, िचिडया ििर बोली:

ओ, िाने वाले चोरो!तीन लोक को टीपना और तीसरा रिवाला।चोर बोल, "बाप रे, यि तो बडे अचमभे की बात िै! जरर यि कोई भतू-पेत

िोिा।! चोर इतने डर िए िक अपना सबकुछ विीं छोडकर भाि िडे िुए। उसके बाद ििर चोर कभी आए िी निीं। िकसान के िेत मे जवार िूब पकी। अचछी िसल िुई।

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बाव ला -बावली

एक था बावला, एक थी बावली।िदन भर लकडी काटने के बाद थका-मादा बावला िाम को घर पिंुचा और

उसने बावली से किा, "बावली! आज तो मै थककर चूर-चरू िो िया िंू। अिर तमु मेरे िलए पानी िरम कर दो, तो मै निा लूं, िरम पानी से पैर सेक लूं और अपनी थकान उतार लूं।"

बावली बोली, "वाि, यि तो मै िुिी-ििुी कर दंिूी। देिो, वि िंडा पडा िै। उसे उठा लाओ।

बावले ने िंडा उठाया और पूछा, "अब कया करं?"

बावले बोली, "अब पास के कंुए से इसमे पानी भर लाओ। "

बावला पानी भरकर ले आया। ििर पछूा, "अब कया करं?"

बावली बोली, "अब िंडे को चूलिे पर रि दो।"बावले ने िंडा चूलिे पर रि िदया और पूछा, "अब कया करं?"

बावली बोली, "अब लकडी सलुिा लो।"बावले ने लकडी सलुिा ली और पूछा, "अब कया कर 1ं?ं"

बावली बोली, "बस, अब चलूिा िंूकते रिो।बावले ने िंूक -िंूककर चलूिा जला िलया और पछूा , "अब कया करं?"

बावली बोली, "अब िंडा नीचे उतार लो।"बावले ने िंडा नीचे उतार िलया और पूछा, "अब कया करं?"

बावली बोल, "अब िंडे को नाली के पास रि लो।"बावली ने िंडा नाली के पास रि िलया और पछूा, "अब कया करं?"

बावली बोली,"अब जाओ और निा लो।"बावला निा िलया। उसने पूछा, "अब कया करं?"

बावला बोली, "अब िंडा िंडे की जिि पर रि दो।"

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बावले ने िंडा रि िलया और ििर अपने सारे बदन पर िाथ िेरता-िेरता वि बोला, "वाि, अब तो मेरा यि बदन िूल की तरि िलका िो िया िै। तमु रोज इस तरि पानी िरम कर िदया करो तो िकतना अचछा िो।"

बावली बोली, "मझेु इसमे कया आपित िो सकती िै। सोचो, इसमे आलसय िकसका िै?"

बावली बोली, "बिुत अचछा! तो अब तुम सो जाओ।"

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सूप से कानवाला राजाएक राजा था। एक िदन वि ििकार िेलने िनकला। ििकार का पीछा करते-

करते वि बिुत दरू िनकल िया, पर ििकार िाथ लिा निीं। िाम िो आई। भिू भी जोर की लिी। राजा रासता भूल िया था, इसिलए वापस अपने मिल निीं जा सकता था। भिू की बात सोचता-सोचता वि एक बरिद के नीचे जा बैठा। जिां बठेै-बैठे उसकी िनिाि िचडा-िचडी के एक जोडे पर पडी। उसे जोर की भिू लिी थी, इसिलए उसने िचडा-िचडी को मारकर िा जाने की बात सोची। बेचारे िचडा-िचडी चपुचाप अपन ेघोसले मे बैठे थे। राजा ने उनिे पकडा, उनकी िरदन मरोडी, और उनिे भूनकर िा िया। इससे राजा को बिुत पाप लिा, और तुरनत राजा के कान सूप की तरि बडे िो िये।

राजा ििरे सोच मे पड िया। अब कया िकया जाय? वि रात िी मे चपुचाप अपने राजमिल मे पिंुच िया, और दीवान को बलुाकर सारी बात कि दी। ििर किा, "सुिनए दीवानजी। आप यि बात िकसी से कििए मत। और िकसी को यिां इस सातवीं मिंजल पर आने भी मत दीिजए।"

दीवान बोला, "जी, ऐसा िी िोिा।"दीवान ने िकसी से कुछ किा निीं। इसी बीच जब राजा की िजामत बनाने का

िदन आया, तो राजा ने किा, "िसिक नाई को ऊपर आने दीिजए।"अकेला नाई सातवीं मिंजल पर पिंुचा। नाई तो राजा के सूप-जैसे कान देिकर

ििरे सोच मे पड िया।राजा ने किा, "सनुो, धनना! अिर मेरे कान की बात तुमने िकसी से किी, तो

मै तमुको कोलिू मे डालकर तमुिारा तेल िनकलवा लूिंा। समझ लो िक मै तमुको िजनदा निीं छोडंूिा।"

नाई ने िाथ जोडकर किा, "जी, मिाराज! भला, म ैकयो िकसी को किने लिा!"

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लेिकन नाई के पेट मे बात कैसे पचती! वि इधर जाता और उधर जाता, और सोचता िक बात किंू, तो िकससे किंू? आििर वि िौच के िलए िनकला। बात तो उसके पेट मे उछल-कूद मचा रिी थी—मुंि से बािर िनकलने को बेताब िो रिी थी। आििर नाई ने जिंल के रासते मे पडी एक लकडी से किा:

राजा के कान सूप-से, राजा के काम सूप-से।लकडी ने बात सुन ली। वि बोली:राजा के कान सूप से, राजा के कान सपू-से।उसी समय विां एक बढई पिंुचा। लकडी को इस तरि बोलते देिकर बढई

ििरे सोच मे पड िया। उसने िवचार िकया िक कयो न मै इस लकडी के बाजे बनाऊं और उनिे अपने राजा को भेट करं? राजा तो िुि िो जायिा। बढई ने उस लकडी से एक तबला बनाया, एक सारंिी बनाई और एक ढोलक बनाई। जब वि इन नए को लेकर राजमिल मे पिंुचा, तो राजा ने किलवाया--"मिल के िनचले भाि मे बैठकर िी अपने बाजे बजाओ।"

बढई ने बाजे िनकालकर बािर रिे। तभी तबला बजने लिा:राजा के कान सूप-से, राजा के कान सूप-से।

इस बीच अपनी बारीके आवाज मे सारंिी बजने लिी:तुझको िकसने किा? तुझको िकसने किा।

तुरनत ढोलक आिे बढी और ढप-ढक करके बोलने लिी:धनना नाई ने किा, धनना नाई ने किा।

राजा सबकुछ समझ िया। उसने बढई को इनाम देकर रवाना िकया और उसके बनाए सब बाजे रि िलए, िजससे िकसी को इस भेद का पता न चले।

बाद मे राजा ने धनना नाई को बलुाया और पूछा, "कयो रे,धनना! सच-सच कि, तूने बात िकसको किी थी?

नाई बोला, "मिाराज, बात तो िकसी से निीं किी, पर मेरे पेट मे बिुत िकलिबलाती रिी, इसिलए मैने एक लकडी को कि दी थी।"

राजा ने नाई को राजमिल से िनकलवा िदया और पछताने लिा िक उसने एक नाई को इस बात की जानकारी कयो िोने दी।

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सोनबाई और बि ुला

एक थी सोनबाई। बडी सुनदर थी। एक बार सोनबाई अपनी सिेिलयो के साथ िमटटी लेने िई। जिां सोनबाई िोदती, विां सोना िनकलता और जिां उसकी सिेिलयां िोदतीं, विां िमटटी िनकलती। यि देिकर सब सिेिलयो के मन मे सोनबाई के िलए ईषया क पैदा िो िई। सब सिेिलयो ने अपना-अपना टोकरा िसर पर उठाया और सोनबाई को अकेली िी छोडकर चली िई।

सोनबाई ने अकेले-अकेले अपना टोकरा अपने िसर पर रिने की बिुत कोििि की, पर वि टोकरे को िकसी भी तरि चढा निीं पाई। इसी बीच उधर से एक बिलुा िनकला।

सोनबाई ने किा, "बिुला भाई, बिुला भाई! यि टोकरा मेरे िसर पर रिवा दो।"

बिुला बोला, "अिर तुम मझुसे बयाि कर लो, तो मै यि टोकरा िसर पर रिवा दं।ू" सोनबाई ने "िां" किा और बिलेु ने टोकरा िसर पर रिवा िदया। टोकरा लेकर सोनबाई अपने घर की तरि चली। बिुला उसके पीछे-पीछे चला। घर पिंुचकर सोनबाई ने अपनी मां से सारी बात कि दी।

मां ने किा, "अब तमु घर के बािर किीं जाना िी मत। बािर जाओिी, तो बिुला तमुको ले भािेिा।"

बािर िडे िुए बिलेु ने यि बात सनु ली। उसको बिुत िसुसा आया। उसने सब बिुलो को बुला िलया और उनसे किा, "इस नदी का सारा पानी पी डालो।" इतना सुनते िी सारे बिुले पानी पीने लिे और थोडी िी देर मे नदी सूि िई।

दसूरे िदन जब सोनबाई के िपता अपनी भसैो को पानी िपलाने के िलए नदी पर पिंुचे, तो देिा िक नदी मे तो कंकर-िी-कंकर रि िए िै! उनिोने नदी के िकनारे िडे िुए बिुले से किा:

पानी छोडो बिलेु भैया!पानी छोडो बिलेु भैया!घुडसाल मे घोडे पयासे िै।

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नोिरे मे िाये पयासी िै।बिुले ने किा, "अपनी बेटी सोनबाई का बयाि आप मुझसे कर देिे तो मै

पानी छोड दंिूा।"सोनबाई के िपता ने बिलेु की बात मान ली, और बिुले ने नदी मे पानी छोड

िदया। नदी ििर पिले की तरि कल-कल, छल-छल करके बिने लिी।सोनबाई का बयाि बिलेु के साथ िो िया। सोनबाई को अपने पंिो पर बठैाकर

बिुला उसे अपने घर ले आया। ििर सोनबाई और बिुला दोनो एक साथ रिने लिे। बिुला सवयं दाना चिु आता था और अपने साथ सोनबाई के िलए भी दाना ले आता था।

ऐसा िोते-िोते एक िदन सोनबाई के एक लडका िुआ। सोनबाई की ििुी का कोई िठकाना न रिा!

एक िदन सोनबाई के िपता ने सोचा—िकसी को भेजकर पता तो लिवाऊं िक सोनबाई के भाई को भेजा। भाई सोनबाई के पास पिंुचा। भाई-बिन दोनो िमले िूब िुि िुए। इतने मे बिलेु के चिुकर वापस आने का समय िो िया।

सोनबाई ने किा, "भयैा! तमु रजाइयो वाली इस कोठरी मे िछप जाओ। बिलुा ऐसा िूंिार िै िक तमुको देि लेिा, तो मार डालेिा।"

भाई कोठरी मे िछप िया। सोनबाई ने दो िपलले पाल रिे थे। उनमे से एक को चककी के नीचे िछपा िदया और दसूरे को झाडू से बांधकर घर मे रिा। ििर वि दरवाजे के पास जाकर उसकी आड मे बठै ियी। इसी बीच बिलुा आया और बोला, "दरवाजा िोलो।"

सोनबाई तो कुछ बोली निीं, लेिकन सोनबाई का लडका बोला:बाबा, बाबा!मामा िछपे िै कोठरी मे।छोटा िपलला बैठा िै चककी के नीचे।बडा िपलला बंधा िै झाडू से।

बािर िडा बिुला बोला, "सोनबाई! यि मुनना कया कि रिा िै?"

सोनबाई ने किा, "यि तो योिी बड-बड कर रिा िै।"इतने मे लडका ििर बोला:

बाबा, बाबा!मामा िछपे िै कोठरी मे।छोटा िपलला बैठा िै चककी के नीचे।बडा िपलला बंधा िै झाडू से।

बिुला बोला, "दरवाजा िोलो।" लेिकन सोनबाई ने दरवाजा निीं िोला। बिलुा ििर चुिने चला िया।

बाद मे मामा मायके कोठरी से बािर िनकला और सोनबाई अपने लडके को लेकर उसके मायके चली ियी। जब बिुला घर लौटा,तो उसने देिा, विां कोई निीं िै।

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आमन े-सामन े कीिी ंचा तानी

एक था बिनया। नाम था, वीरचनद। िांव मे रिता था। दकुान चलाता था और उससे अपना िजुर-बसर कर लेता था। िांव मे कािठयो और कोिलयो के बीच झिडे चलते रिते थे। पीिढयो पुराना बैर चला आ रिा था।

एक िदन कािठयो के मन िींचकर िबिडे और कोिलयो को ताव आ िया। बीच बाजार मे तलवारे िींचकर लोि आमने-सामने िडे िो िए। काठी ने अपनी िुिडी िनकाल ली और कोली पर िमला िकया। कोली पीछे िट िया और काठी पर झपटा। एक बार मे काठी का िसर धड से अलि िो िया। तलवार िून से निा ली।

मार-काट देिकर बिनया बुरी तरि डर िया और अपनी दकुान बंद करके घर के अनदर दबुककर बैठ िया। बैठा-बैठा सबकुछ देिता रिा और थर-थर कांपता रिा। लोि पुकार उठे—दौडो-दौडो, काठी मारा िया िै।‘ चारो तरि से िसपािी दौडे आए। िांव के मिुिया और चौधरी भी आ िए। सबने किा, "यि तो रघु कोली का िी वार िै। दसूरे िकसी की यि ताकत निीं।" लेिकन अदालत मे जाना िो, तो िबना िवाि के काम कैसे चले?

िकसी ने किा, "वीरचनद सेठ दकुान मे बैठे थे। ये िी िमारे िवाि िै। देिा, न देिा, ये जाने। पर अपनी दकुान मे बठेै तो थे।"

बिनया पकडा िया और उसे थानेदार के सामने िािजर िकया िया। थानेदार ने पूछा, "बोल बिनये! तू कया जानता िै?"

बिनये ने किा, "िुजूर, मै तो कुछ भी निीं जानता। अपनी दकुान मे बैठा मै तो बिी िाता िलिने मे लिा था।"

थानेदार बोला, "तुझे िवािी देनी पडेिी। किना पडेिा िक मैने सबकुछ अपनी आंिो से देिा िै।"

बिनया परेिान िो िया। िसर ििलाकर घर पिंुचा। रात िो चकुी थी। पर नींद आ रिी थी। बिनया सोचने लिा—‘यि बात किंूिा, तो कोिलयो के साथ दशुमनी िो जायिी, और यि किंूिा, तो काठी मेरे पीछे पड जायिे। कुछ बिनये की अकल से काम लेना िोिा।’ बिनये को एक बात सझूी ओर वि उठा। ढीली धोती, िसर पर पिडी और कंधे पर चादर डालकर वीरचनद चल पडा। एक काठी के घर पिंुचकर दरवाजा िटिटाया।

काठी ने पूछा, "सेठजी! कया बात िै? कया बात िै? इतनी रात बीते कैसे आना िुआ?"

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बिनये ने किा, "दादाजी! िांव के कोली पािल िो उठे िै। किां जाता िै िक आज उनिोने एक िून कर िदया! पता निीं कल कया कर बैठेिे? कल का कलं देिा जायिा।" बिनये की बात सुनकर दादाजी िुि िो िए और उनिोने बिनये के िाथ मे सौ रपये रि िदए।

कमर मे रपए बांधकर बिनया कोली के घर पिंुचा। कोली ने पछूा, "सेठजी! इस समय कैसे आना िुआ? कया काम आ िया?"

बिनये ने किा, "काम कया बताऊं? अपने िांव के ये काठी बिुत बावले िोउ ठेिै। एक को ितम करके ठीक िी िकया िै। धनय िै कोली, और धनय िै, कोली की मां!"

सुनकर कोली िुि िो िया। उसने बिनये को दस मन बाजरा तौल िदया। बिनया घर लौटा और रात आराम से सोया। सोते-सोते सोचने लिा- ‘आज कोली और काठी को तो लटू िलया, अब कल अदालत को भी ठिना िै।’ दसूरे िदन मकुदमा िरु िुआ।

नयायाधीि ने किा, "बिनये! बोल, जो झूठ बोल, उसे भिवान तौले।" बिनये ने किा, "जो झूठ बोले, उसे भिवान तौले।"

नयायधीि ने पूछा, "बिनये! बोल, िून कैसे िुआ और िकसने िकया?"

बिनये ने किा, "सािब, इधर से काठी झपटे और उधर से कोली कूदे।""ििर कया िुआ?"

"ििर विी िुआ।""लेिकन विी कया िुआ?"

"सािब! यिी िक इधर से काठी झपटे और उधर से कोली कूदे।""लेिकन ििर कया िुआ?"

"ििर तो आमने-सामने तलवारे ििचं िई और मेरी आंिे िमच िई।"इतना किकर बिनया तो भरी अदालत के बीच धमम से ििर पडा और बोला,

"सािब, बिनये न कभी िून की बूंद भी देिी िै? जसेै िी तलवारे आमने-सामने ििंचीं, मुझे तो चककर आ िया और मेरी आंिे तभी िलुीं, जब िसपािी विां आ पिंुचे।"

नयायाधीि ने किा, "सनु, एक बार ििर अपनी सब बाते दोिरा दे।"बिनया बोला:

इधर से काठी झपटे।उधर से कोली कूदे।आमने-सामने तलवारे ििंच िई।और मेरी आिें िमच िई।

नयायाधीि ने बिनये को तो िवदा कर िदया, लेिकन समझ निीं पाए िक काठी कका िून िकसने िकया िै। मकुदमा िािरज िो िया।

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कुता और च ीता

एक था कुता। एक था चीता। दोनो मे दोसती िो िई। कुते का अपना घर निीं था, इसिलए वि चीते के घर मे रिता था। कुता चीते के घर रिता था, इसिलए चीता उससे काम करवाता था और उसे नौकर की तरि रिता था, चौमासा आया। चीते ने किा, "कुते भैया! आओ िम बािंबया देिने चले। देिे िक इस बार बािंबयो मे िकतनी और कैसी-कैसी चीिटयां उमडी िै।"

दोनो बािंबयो के पास पिंुचे। देिा िक विां तो अनििनत चीिटयो और कीडो-मकोडो की कतारे लिी थीं। दोनो ने अंजली भर-भरकर चीिटयां और कीडे-मकोडे इकटठा कर िलए और उनको घर ले आए। चीते की घरवाली ने इनकी बिढया िमठाई बनाई और सबने जी भर िाई। बची िुई िमठाई सिुा ली िई। िा-पीकर दोनो दोसत आराम करने बैठे। चीते ने किा, "कुते भैया! यि सुिाई िुई िमठाई मझेु अपनी ससुराल पिंुचानी िै। तमु इसकी चार छोटी-छोटी पोटिलयां तैयार कर लो।"

कुते ने चार छोटी-छोटी पोटिलयां बांध लीं। ठाठ-बाट के साथ चीता तैयार िो िया। िाथ मे सारंिी ले ली और वि िाता-बजाता ससुराल चल पडा। कुते से किा, "तुम ये पोटिलयां उठा लो।"

आिे-आिे चीता और पीछे-पीछे कुता। रासते मे जो भी िमलता, सो पछूता, "चीते भैया, किां जा रिे िो? कुते भैया, किां जा रिे िो?"

चीता किता, "मै अपनी ससुराल जा रिा िंू।"कोई किता, "चीते भैया! जरा अपनी यि सारंिी तो बजाओ।" और चीता सारंिी

बजाकर िाने लिता:कुते भैया के िसर पर बिू की िसरनी।कुते भैया के िसर पर बिू की िसरनी।

चीता तो मसत िोकर िाता, और इधर कुते का जी जलता रिता। आििर कुते भैया को िसुसा आ िया। उसने किा, "चीते भैया! मै यिां थोडी देर के िलए रकता िंू। आप आिे चिलए। मै अभी आया।" चीते भैया आिे बढ िए।

कुते ने पोटिलयां िोलीं ओर सारी िमठाई िा डाली। ििर घास भरकर पोटिलयां बना लीं और कदम बढाते िुए चीते भैया के पास पिंुचकर उसके साथ-साथ

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चलने लिा। कुछ देरन के बाद कुते ने किा, "चीते भैया! अपनी यि सारंिी मझेु दे दो? मन िोता िै िक मै भी थोडा-सा िा लूं और बजा लूं।" कुते ने सारंिी िाथ मे लेकर िाना िरु िकया:

अपने ससुर के िलए,

मै घास-पान लाया िंू।अपने ससुर के िलए, मै घास-पान लाया िंू।

चीता बोला, "वाि कुते भयैा! आपका िाना तो बिुत बिढया रिा!"कुते ने किा, "भैया, यि तो तुमिारी िी मेिरबानी िै िक मै इतना अचछा िा-

बजा लेता िंू। मनैे यि सब तुमिीं से तो सीिा िै न?"

चीता िाते-बजाते अपनी ससुराल पिंुच। ससरुाल वालो ने सबके कुिल समाचार पूछे। चीते ने भी अपनी तरि से सबकी राजी-िुिी पछूी। चीता तो जमाई बनकर आया था। उसका अपना अलि ठाठ था। विां कुते को भला कौन पूछता? सास ने जमाई को बडे पेम के साथ िुकका िदया। चीता बैठा-बैठा िुकका िुडिुडाने लिा। कुते को िकसी ने पूछा तक निीं। कुछ देर बाद सबकी नजर बचाकर कुता बािर िनकल आया और दौडते िुए अपने घर की तरि चल पडा।

िुकका िडुिुडाते िुए जमाई ने िंसते-िंसते किा, "आप सबके िलए मै यि िमठाई लाया िंू। बिुत बिढया िै। सास ने ििुी-िुिी पोटली िोली। ससुर भी आंि िडाकर देिते रिे। जब पोटली िलुी, तो देिा िक उसमे िमठाई के बदले घास भरी िै।

घास देिकर चीता आि-बबलूा िो उठा और कुते को िोजने लिा। लेिकन कुता तो बिुत पिले िी नौ-दो गयारि िो चुका था। चीते ने बािर िनकलकर एक सयाने आदमी से पछूा, "बाबा, कुते को कैसे पकडा जाय?"

उसने किा, "ढोल बजाकर नाचना िुर करो, तो नाच देिने के िलए कुता भी आ जायिा।" चीते ने ढोल बजाकर नाच िुर िकया। िाय, भैस, भेड सारे जानवर इकटठा िो िए। लेिकन कुते के मन मे तो डर था। उसने सोचा-अिर मै िया, तो चीता मुझे िजनदा निीं छोडेिा।

दसूरा िदन िुआ। भेड ने कुते से नाच की बात किी। कुते के मन मे नाच देिने की इचछा बढ ियी। लेिकन नाच देिे कैसे ? भेड ने किा, "मै तुमको अपनी पूंछ मे िछपाकर ले चलूंिी। चीता तमुको कैसे देि सकेिा?" तीसरे िदन ििर ढोल बजने लिे और नाच िरु िुआ। भेड की पूछं मे िछपकर कुता नाच देिने चला। चीता तो कुते को चारो ओर िोजता िी रिता था, पर कुता किीं िदिायी निीं पडता था। इससे चीता िनराि िो िया।

अिली रात को ििर ढोल बजवाए और नाच िरु करवाया। भेड की पूछं मे िछपकर कुता ििर नाच देिने पिंुचा। ढोल जोर-जोर से बजने लिा। नाच का जोर भी िूब बढ िया। सब जानवर अपनी पूंछे ििला-ििलाकर नाचने लिे।

भेड की पूंछ मे तो कुता िछपा था। भेड भला कैसे नाचती, और कैसे आपनी पूंछ ििलाती? लेिकन नाच का जोर इतना बढा और ढोल भी इतने जोर-जोर से बजने लिा िक भेड से रिा निीं िया। वि भी अपनी पूंछ ििला-ििलाकर नाचने लिी। कुता पूंछ मे से िनकलकर बािर आ ििरा। कुते ने सोचा, ‘अब मेरे!’ वि िौरन िी उठकर भािा और एक आदमी की आड मे िछप िया। चीते ने िसुसे मे भेड को मार डाला

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और एक आदमी ििर वि कुते को मारने जो दौडा तो आदमी ने अपना लाठी तान ली।

चीते ने किा, "अचछी बात िै, कुते भैया! कभी कोई मौका िमलने दो। िकसी िदन तुमको अकेला देिूंिा, तो मारकर िा िी जाऊंिा।"

उस िदन से कुते और चीते के बीच दशुमनी चली आ रिी िै। कुता चीते को देिकर भाि िडा िोता िै। कुतो ने जंिल मे रिना छोड िदया िै, और तबसे लेकर अब तक वि आदमी के िी साथ रिने लिा िै।

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िडबड-िडबडिो दत िैएक बाहण था। बडा िी गरीब था। एक बार उसकी घरवाली ने उससे किा, "अचछा िो, आप कोई काम-धनधा िुर करे। अब तो बचचो को कभी-कभी भूिे सोना पडता िै।"

बाहण बोला, "लेिकन मै करं कया? मुझे तो कुछ भी निीं आता। कोई रासता सुझाओ।"

बाहणी पढी-िलिी और समझदार थी। उसने किा, "सिुनए, यि एक शोक मे आपको रटवाये देती िंू। आप इसे िकसी राजा को सनुायंिे, तो सुन सुनकर वि आपको कुछ पैसा जरर देिे। शोक भिूलए मत।" बाहणी ने बाहण को शोक याद करवा िदया।

बाहण शोक बोलता-बोलता दरू की यािा पर िनकल पडा। रासते मे नदी िमली। निाने-धोने और िाने-पीने के िलए बाहण विां रक िया। जब उसका मन निाने-धोने मे लिा,तो वि अपनी घरवाली का िसिाया िुआ शोक भलू िया। वि शोक को याद करने लिा, पर कुछ भी याद निीं आया। इसी बीच उसने देिा िक एक जल-मिुी नदी-िकनारे कुछ िोद रिी िै। शोक को याद करते-करते जब उस जलमिुी को िोदते देिा, तो उसके मन मे एक नया चरण उजािर िुआ। वि बोलने लिा:

िडबड-िडबड िोदत िै।जब बाहण ‘िडबड-िडबड िोदत िै’ बोलने लिा, तो उसकी आवाज सुनकर

जलमुिी अपनी िरदन लमबी करके देिने लिी। यि देिकर बाहण के मन मे दसूरा चरण उभरा। वि बोला:

लमबी िरदन देित िै।बाहण जब दसूरी बार बोला, तो जलमिुी मारे डर के चुपचाप िछप िई। यि

देिकर बाहण के मन मे तीसरा चरण जनमा। उसने किा:उकडू मकुडू बैठत िै।

बाहण की आवाज सनुकर जलमुिी तेजी से दौडी और पानी मे कूद पडी। इस दशूय को देिकर बाहण के मन मे चौथा चरण उठा। वि बोला:

सरसर सरसर दौडत िै।

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बाहण पिला शोक तो भलू चकुा था, पर अब उसे यि नया शोक याद िो िया था। यि मानकर िक यिी शोक उसे िसिाया िया िै, इस शोक को दोिराता वि आिे बढा:

िडबड-िडबड िोदत िै।लमबी िरदन देित िै।उकडू मकुडू बैठत िै।सरसर सरसर दौडत िै।

चलते चलते वि एक निर मे पिंुचा। वि निर के राजा के दरबार मे िया और सभा मे जाकर उसने अपना शोक सनुा िदया।

राजा ने यि िविचि और नया शोक िलि िलया। शोक का अथ क न राजा की समझ मे आया, और न दरबािरयो मे से िी िकसी की समझ मे आया। यि देिकर राजा ने बाहण राजा ने बाहण से किा, "मिाराज! दो-चार िदन के बाद आप ििर दरबार मे आइए। अभी िमारे मेिमान-घर मे िा-पीकर आराम से रििए। अम आपको आपके इस शोक का जवाब देिे।"

राजा ने बाहण का यि शोक अपने सोने के कमरे मे िलिवा िलया। राजा शोक का अथ क लिाने के िलए रोज रात बारि बजे जािता और रात के सुनसान मे अकेला बैठकर शोक का एक-एक चरण बोलता और उसके अथ क पर िवचार करता रिता।

एक रात की बात िै। चार चोर राजा के मिल मे चोरी करने आए। राजमिल के पास पिंुचकर विां से िोदने लिे। रात के ठीक बारि बजे थे। उस समय राजा शोक के पिले चरण के बारे मे सोच रिा था। उधर चोर िोदने के काम मे लिे थे। राजा की बात उनके कानो तक पिंुची:

िडबड-िडबड िोदत िै।चोरो ने सोचा िक राजा जाि रिा िै और िोदने की आवाज सनु रिा िै।

इसिलए चोरो मे से एक चोर राजमिल की ििडकी पर चढा और उस बात का िनशय करने के िलए िक राजा जाि रिा िै या निीं, वि लमबी िरदन करके कमरे मे देिने लिा। ठीक इसी समय राजा ने दसूरा चरण दोिराया:

लमबी िरदन देित िै।यि सुनकर ििडकी मे से देिने वाले चोर को िवशास िो िया िक राजा जाि

रिा िै। यिी निीं उसने उसकी लमबी िरदन को भी देि िलया िै। इसिलए वि तेजी से नीचे उतर िया और उसने अपने सािथयो को इिारे से किा िक सब चपुचाप बैठ जायं। सब िसमटकर चुपचाप बैठ िए। इसी बीच राजा ने तीसरा चरण दोिराया:

उकडू-मुकडू बठैत िै।सुनकर चोरो ने सोचा िक अब भािना चाििए। राजा को पता चल िया िै और

वि िमे देि भी रिा िै। अब िम जरर पकडे जायेिे और मारे भी जायंिे। सब डरकर एक साथ दौडे। इतने मे राजा ने चौथा चरण दोिराया:

ये चोर तो राजा के दरबान िी थे। ये िी राजमिल के चौकीदार भी थे। इनकी नीयत िराब िो िई थी, इसिलए चोरी करने िनकल पडे। चोर तो भािकर अपने घर पिंुच िए। लेिकन जब दसूरे िदन दरबार िए तो वे सलामी के िलए राजा के सामने

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िािजर िुए। उनको पकका भरोसा िो िया था िक राजा सबकुछ जान िए िै और उनिोने उनको पिचान भी िलया िै।

जब दरबान सलामी के िलए निीं आए, तो राजा ने पूछा, "आज दरबान सलामी के िलए कयो निीं आए? उनके घर कोई बीमार तो निीं िै?" राजा ने दसूरे िसपािियो से किा िक वे दरबानो को बुला लाएं। दरबान आए तो राजा को सलाम करके िडे िो िए।

राजा ने पूछा, "कििए, आज आप लोि दरबार मे िािजर कयो निीं िुए?"

दरबान तो थरथर कांपने लिे। उनको भरोसा था िी िक राजा सारी बात जान चुके िै। यि सोचकर िक अिर झूठ बोलेिे, तो जयादा सजा भुितनी िोिी—उनिोने रातवाली सारी बात सिी-सिी सुना दी।

बात सुनकर राजा को तो बिुत िी अचमभा िुआ। उसने सोचा िक यि सारा पताप तो बाहण के उस शोक का िी िै। शोक तो बडा िी चमतकारी िसद िुआ! राजा बाहण पर बिुत पसनन िो िया। उसने बाहण को बलुाया और भरपूर इनाम देकर िवदा िकया।

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िंस औ र कौआएक सरोबर था, समनदर जसैा बडा। उसके िकनारे बरिद का एक बिुत बडा पेड था। उस पर एक कौआ रिता था।

कौआ तो काजल की तरि काला था, काना था और लिंडा था। कौआ कांव-

कांव बोला करता था। जब वि उडता था, तो लिता था िक अब ििरा, अब ििरा। ििर भी उसके घमणड की तो कोई सीमा निीं थी। वि मानता था िक उसकी तरि तो कोई उडिी निीं सकता, न कोई उसकी तरि बोल िी सकता िै। कौआ लाल-बुझककड बनकर बैठता और सब कौओं को डराता रिता।

एक बार विां कुछ िंस आए। आकर बरिद पर रात भर रिे। सबेरा िोने पर कौए ने िंसो को देिा। कौआ ििरे सोच मे पड िया—‘भला ये कौन िोिे? ये नए पाणी किां के िै?" कौए ने अपनी िजनदिी मे िंस कभी देिे िोते तो वि उनको पिचान पाता? उसने अपना एक पंि घुमाया, एक टािं उठाई और रौब-भरी आवाज मे पूछा, "आप सब कौन िै? यिां कयो आए िै? िबना पूछे यिां कयो बठेै िै?"

िंस ने किा, "भयैा! िम िंस िै। घूमते-ििरते यिां आ िए िै। थोडा आराम करने के बाद आिे बढ जायेिे।"

कौआ बोला, "सो तो मनैे सब जान िलया, लेिकन अब यि बताओ िक आप कुछ उडना भी जानते िै या निी?ं या अपना िरीर योिी इतना बडा बना िलया िै।"

िंस ने किा, "िां, िां उडना तो जानते िै, और कािी उड भी लेते िै।"कौए ने पछूा, "आप कौन-कौन-सी उडाने जानते िै? अपने राम को तो

इककावन उडाने आती िै।"िंस ने किा, "इककावन तो निी,ं लेिकन एकाध उडान िम भी उड लेते िै।"कौआ बोला, "ओिो, एक िी उडान! अरे, इसमे कौन-सी बडी बात िै?"

िंस ने किा, "िम तो बस इतना िी जानते िै।"कौआ बोला, "कौए की बराबरी कभी िकसी ने की िै? किां इककावन, और किां

एक? कौआ तो कौआ िै िी, और िंस िंस िै!"

िंस सनुते रिे। वे मन-िी-मन िंसते भी रिे। लेिकन उन िंसो मे एक नौजवान िंस भी था। उसके रिा निीं िया। उसका िून उबल उठा। वि बोला, "कौए भैया! अब तो िद िो िई। बेकार की बकवास कयो करते िो? आओ िम कुछ दरू उड ले। लेिकन पिले तुम िमे अपनी इककावन उडाने तो िदिा दो! ििर िम भी देिेिे, और िमे पता चलेिा िक कैसे कौआ, कौआ िै, और िंस, िंस िै।"

िंस बोला, "लो देिो।"

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िंस ने किा, "िदिाओ।"कौए ने अपनी उडाने िदिाना िुर िकया। एक िमनट के िलए वि ऊपर उडा

और बोला, "यि िुई एक उडान।" ििर नीचे आया और बोला, "यि दसूरी उडान।" ििर पते-पते पर उडकर बैठा और बोला , "यि तीसरी उडान।" बाद मे एक पैर से दाििनी तरि उडा और बोला, "यि चौथी उडान।" ििर बाई तरि उडा और बोला, "यि पांचवीं उडान।"

कौआ अपनी ऐसी उडाने िदिाता िया। पाचं, सात, पनदि बीस, पचचीस, पचास और इककावन उडाने उसने िदिा दीं। िंस तो टकटकी लिाकर देिते और मन-िी-मन िंसते रिे।

इककावन उडाने परूी करने के बाद कौआ मसकराते-मसुकराते आया और बोला, "कििए, कैसी रिी ये उडान!े

िंसो ने किा, "उडाने तो गजब की थीं! लेिकन अब आप िमारी भी एक उडान देिेिे न ?"

कौआ बोला, "अरे, एक उडान को कया देिना िै! यो पंि िडिडाए, और यो कुछ उड िलए, इसमे भला देिना कया िै?"

िंसो ने किा, "बात तो ठीक िै, लेिकन इस एक िी उडान मे िमारे साथ कुछ दरू उडाना िो, तो चली। उडकर देि लो। जरा। तुमिे पता तो चलेिा िक यि एक उडाने भी कैसी िोती िै?"

कौआ बोला, "चलो, म ैतो तयैार िंू। इसमे कौन, कोई िेर मारना िै।"िंस ने किा, "लेिकन आपको साथ िी मे रिना िोिा। आप साथ रिेिे, तभी तो

अचछी तरि देि सकेिे न?"

कौआ बोला, "साथ की कया बात िै? मै तो आिे उडंूिा। आप और कया चािते िै?"

इतना किकर कौए ने िटािट पंि िडिडाए और उडना िरु कर िदया। िबलकुल धीरे-धीरे पंि िडिडाता िुआ िंस भी पीछे-पीछे उडता रिा। इस बीच कौआ पीछे को मुडा और बोला, "कििए! आपकी यिी एक उडान िै न? या और कुछ िदिाना बाकी िै?"

िंस ने किा, "भैया, थोडे उडते चलो, उडते चला, अभी आपको पता चल जायिा।"

कौआ बोला, "िंस भैया! आप पीछे-पीछे कयो आ रिे िै? इत ्धीमी चाल से कयो उड रिे िै? लिता िै, आप उडने मे बिुत िी कचचे िै!"

िंस ने किा, "जरा उडते रििए। धीरे-धीरे उडना िी ठीक िै।"कौए के पैरो मे अभी जोर बाकी था। कौआ आिे-आिे और िंस पीछे-पीछे उड

रिा था।कौआ बोला, "किो, भैया! यिी उडान िदिानी थी न? चलो, अब िम लौट चले।

तुम चले। तमु थक िए िोिे। इस उडान मे कोई दम निीं िै।"िंस ने किा, "जरा आिे तो उिडए। अभी उडान िदिाना तो बाकी िै।"कौआ आिे उडने लिा। लेिकन अब वि थक चुका था। अब तक आिे था, पर

अब पीछे रि िया।िंस ने पूछा, "कौए भयैा! पीछे कयो रि िए! उडान तो अभी बाकी िी िै।"

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कौआ बोला, "तमु उडते चलो, मै देिता आ रिा िंू और उड भी रिा िंू।" लेिकन कौए भयैा अब ढीले पडते जा रिे थे। उनमे अब उडने की ताकत निीं रिी थी। उसके पिं अब पानी छूने लिे थे।

िंस ने पूछा, "कौए भैया! कििए, पानी को चोच छूआकर उडने का यि कौन-सा तरीका िै?"

कौआ कया जवाब देता? िंस आिे उडता चला, ओर कौआ पीछे रिकर पानी मे डूबिकयां िाने लिा।

िंस ने किा, "कौए भयैा! अभी मेरी उडान तो देिनी बाकी िै। आप थक कैसे िए?"

पानी पीते-पीते भी कौआ आिे उडने की कोििि कर रिा था। कुछ दरू और उडने के बाद वि पानी मे ििर पडा।

िंस ने पूछा, "कौए भयैा! आपकी यि कौन-सी उडान िै? बावनवीं या ितरपनवीं?"

लेिकन कौआ तो पानी मे डुबिकयां िाने लिा था और आििरी सासंलेने की तैयारी कर रिा था। िंस को दया आ िई। वि िुरती से कौए के पास पिंुचा और कौए को पानी मे से िनकालकर अपनी पीठ पर बैठा िलया। ििर उसे लेकर ऊपर आसमान की ओर उड चला।

कौआ बोला, "ओ भयैा! यि तुम कया कर रिे िो? मुझे तो चककर आ रिे िै। तुम किां जा रिे िो? नीचे उतरो, नीचे उतरो।"

कौआ थर-थर कांप रिा था।िंस ने किा, "अरे जरा देिो तो सिी! मै तमुको अपनी यि एक उडान िदिा

रिा िंू।"सुनकर कौआ िििसया िया। उसको अपनी बेवकूिी का पता चल िया। वि

ििडििडाने लिा। यि देिकर िंस नीचे उतरा औरा कौए को बरिद की डाल पर बैठ िदया। तब कौए को लिा िक िां, अब वि जी िया।

लेिकन उस िदन से कौआ समझ िया िक उसकी िबसात िकतनी िै।

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नानी के घर जाने दो

एक मेमना था। एक बार वि अपनी नानी के घर जाने के िलए िनकला। रासते मे उसे एक िसयार िमला। िसयार ने मेमने से किा, "म ैतो तझेु िा लेता िंू।"

मेमना बोला:नानी के घर जाने दो।मोटा-ताजा बनने दो।ििर िाना चािो,िा लेना।

िसयार ने किा, "अचछी बात िै।"मेमना कुछ िी दरू िया िक रासते मे उसे एक ििद िमला।ििद ने किा, "मै तो तुझे िा लेता िंू।"मेमना बोला:

नानी के घर जाने दो।मोटा-ताजा बनने दो।ििर िाना चािो,िा लेना।

ििद ने किा, "अचछी बात िै।"मेमना आिे बढा। रासते मे उसे एक बाघ िमला। बाघ ने किा, "मै तुझे िा लेता िंू।"मेमना बोला:

नानी के घर जाने दो।मोटा-ताजा बनने दो।ििर िाना चािो,िा लेना।

बाघ ने किा, "अचछी बात िै।"मेमना आिे बढा, तो उसे रासते मे भेिडया, िरड, कुता आिद कई जानवर

िमले। मेमने ने सबको एक िी बात किी:नानी के घर जाने दो।मोटा-ताजा बनने दो।ििर िाना चािो,िा लेना।

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इस तरि सबसे बचता िुआ वि अपनी नानी के पास पिंुचा, और उससे नानी से किा, "नानीजी! मुझको िूब ििलाओ-िपलाओ। मैने जानवरो को वचन िदया िै,

इसिलए वे सब मुझे िा जाने वाले िै।"मेमने ने िूब िाया, िूब पीया और वि मोटा-ताजा बन िया। ििर मेमने ने

अपनी नानी से से किा, "नानीजी! मेरे िलए चमडे का एक ढोल बनवा दो। मै उसमे बैठकर जाऊंिा,तो कोई मझेु पिचानेिा निीं और इसिलए कोई मझुको िायेिा भी निीं।"

नानी ने मेमने के िलए एक अचछा-सा ढोल बनवा िदया। ढोल के अनदर बिढया रई िबछा दी। ििर मेमना ढोल के अनदर बैठ िया। ढोल को एक जोर का धकका मारा तो वि लुढकता-लुढकता चल पडा।

रासते मे िरड िमला। िरड पूछा, "भैया! मेमने को देिा िै?"

ढोल के अनदर बठैा मेमना बोला:कौन-सा मेमना? कौन िो तमु?

चल रे ढोल, ढमाक ढुम।यो जवाब देता-देता मेमना बिुत दरू िनकल िया। अनत मे िसयार िमला।

िसयार ने पछूा, "किीं मेमने को देिा िै?"

अनदर से मेमना बोला:कौन-सा मेमना? कौन िो तमु?

चल रे ढोल, ढमाक ढुम।िसयार ने सोचा, "अरे, लिता िै िक मेमना तो इसके अनदर बैठा िै। चलूं इस

ढोल को िोड डालूं और मेमने को िा लूं।" लेिकन इसी बीच मेमने का घर आ िया, और मेमना अपने घर मे घुस िया।

िसयार दरवाजे के पास िडा-िडा देिता रि िया।

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लोभ ीदरजी

एक था दरजी, एक थी दरिजन। दोनो लोभी थे। उनके घर कोई मेिमान आता, तो उनिे लिता िक कोई आित आ िई। एक बार उनके घर दो मेिमान आए। दरजी के मन मे ििकर पैदा िो िई। उसने सोचा िक ऐसी कोई तरकीब चाििए िक ये मेिमान यिां से चले जाये।

दरजी ने घर के अनदर जाकर दरिजन से किा, "सुनो, जब मै तुमको िािलयां दंू, तो जवाब मे तमु भी मुझे िािलयां देना। और जब मै अपना िज लेकर तमुिे मारने दौडू तो तमु आटे वाली मटकी लेकर घर के बािर िनकल जाना। मै तुमिारे पीछे-पीछे दौडूिा। मेिमान समझ जायेिे िक इस घर मे झिडा िै, और वे वापस चले जायंिे।"

दरिजन बोली, "अचछी बात िै।"कुछ देर के बाद दरजी दकुान मे बैठा-बैठा दरिजन को िािलयां देने लिा।

जवाब मे दरिजन ने भी िािलयां दीं। दरजी िज लेकर दौडा। दरिजन ने आटे वाली मटकी उठाई और भाि िडी िुई।

मेिमान सोचने लिे, "लिता िै यि दरजी लोभी िै। यि िमको ििलाना निीं चािता, इसिलए यि सारा नाटक कर रिा िै। लेिकन िम इसे छोडेिे निीं। चलो, िम पिली मिंजल पर चले और विां जाकर-सो जाएं। मेिमान ऊपर जाकर सो िए। यि मानकर िक मेिमान चले िए िोिे, कुछ देर के बाद दरजी और दरिजन दोनो घर लौटे। मेिमानो को घर मे न देिकर दरजी बिुत ििु िुआ और बोला, "अचछा िुआ बला टली।"

ििर दरजी और दरिजन दोनो एक-दसूरे की तारीफ करने लिे।दरजी बोला, "मै िकतना िोिियार िंू िक िज लेकर दौडा!"दरिजन बोली, "म ैिकतनी िुरतीली िंू िक मटकी लेकर भािी।"मेिमानो ने बात सनुी, तो वे ऊपर से िी बोले, "और िम िकतने चतुर िै िक

ऊपर आराम से सोए िै।"

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सुनकर दरजी-दरिजन दोनो िििसया िए। उनिोने मेिमानो को नीचे बलुा िलया और अचछी तरि ििला-िपलाकर िबदा िकया।

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मिर औ र िसयारएक थी नदी। उसमे एक मिर रिता था। एक बार िरिमयो मे नदी का पानी िबलकुल सूि िया। पानी की एक बूंद भी न बची। मिर की जान िनकलने लिी। वि न ििल-डुल सकता था और न चल िी सकता था।

नदी से दरू एक पोिरा था। पोिरे मे थोडा पानी था, लेिकन मिर विां जाये कैसे? तभी उधर से एक िकसान िनकला। मिर ने किा, "ओ, िकसान भैया! मझेु किीं पानी मे पिंुचा दो। भिवान तुमिारा भला करेिा।"

िकसान बोला, "पिंुचा तो दंू, पर पानी मे पिंुचा देने के बाद तुम मुझे पकड तो निीं लोिे?"

मिर ने किा, "निी,ं म ैतुमको कैसे पकडूिा?"

िकसान ने मिर को उठा िलया। वि उसे पोिरे के पास ले िया, और ििर उसको पानी मे छोड िदया। पानी मे पिंुचते िी मिर पानी पीने लिा। िकसान िडा-िडा देिता रिा। तभी मिर ने मुडकर िकसान का परै पकड िलया।

िकसान बोला, "तुमने किा था िक तुम मुझको निीं िाओिे? अब तुमने तुझको कयो पकडा िै?"

मिर ने किा, "सनुो, मै तो तुमको निीं पकडता, लेिकन मझेु इतनी जबरदसत भूि लिी िै िक अिर मैने तुमको न िाया, तो मर जाऊंिा। इससे तो तमुिारी सारी मेिनत िी बेमतलब िो जायिी? मै तो आठ िदन का भिूा िंू।"

मिर ने िकसान का पैर पानी मे िींचना िरु िकया।िकसान बोला, "जरा ठिरो। िम िकसी से इसका नयाय करा ले।"मिर ने सोचा—‘अचछी बात िै, थोडी देर के िलए यि तमािा भी देि ले।

उसने िकसान का पैर मजबूती के साथ पकड िलया और किा, "िां, पूछ लो। िजससे भी चािो, उससे पूछ लो।"

उधर से एक बूढी िाय िनकली। िकसान ने उसकी सारी बात सुनाई और पछूा, "बिन! तुमिीं किा, यि मिर मुझको िाना चािता िै। कया इसका यि काम ठीक किा जायिा?"

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िाय ने किा, "मिर! िा लो तमु इस िकसान को। इसकी तो जात िी बुरी िै। जबतक िम दधू देते िै, ये लोि िमे पालते िै। जब िम बूढे िो जाते िै, तो िमको बािर िनकाल देते िै। कयो भई िकसान! मै ठीक कि रिी िंू न?" मिर िकसान के पैर को जोर से िींचने लिा।

िकसान बोला, "जरा ठिरो। िम और िकसी से पूछ देिे।" विां एक लंिडा घोडा चर रिा था।

िकसान ने घोडे को सारी बात सुना दी और पूछा, "किो, भैया,कया यि अचछा िै?"

घोडे ने किा, "मेिरबान! अचछा निी,ं तो कया बरुा िै? जरा मेरी तरि देििए। मेरे मािलक ने इतने सालो तक मझुसे काम िलया और जब मै लंकडा िो िया, तो मुझे घर से बािर िनकाल िदया? आदमी की तो जात िी ऐसी िै। मिर भैया! तुम इसे िुिी-ििुी िा जाओ!"

मिर िकसान के पैर को जोर-जोर से िींचने लिा। िकसान ने किा, "जरा ठिरो। अब एक िकसी और से पूछ ले। ििर तुम मुझको िा लेना।"

उसी समय उधर से एक िसयार िनकला। िकसान ने किा, "िसयार भैया! जरा िमारे इस झिडे का िैसला तो कर जाओ।"

िसयारन ने दरू से िी पूछा, "कया झिडा िै भाई?"

िकसान ने सारी बात कि दी। िसयार िौरन समझ िया िक मिर िकसान को िा जाना चािता िै। िसयार ने पूछा, "तो िकसान भैया, तुम विां उस सिूी जिि मे पडे थे?"

मिर बोला, "निीं, विां तो मै पडा था।"िसयार ने किा, "समझा-समझा,तुम पडे थे। मै तो ठीक से समझ निीं पाया

था। अचछा, तो ििर कया िुआ?"

िकसान ने बात आिे बढाई। िसयार बोला, "भयैा, कया करं? मेरी अकल काम निीं कर रिी िै। मै कुछ समझ निीं पा रिा िंू। सारी बात एक बार ििर समझाकर किा। िां, तो आिे कया िुआ?"

मिर िचढकर बोला, "सुनो, मै किता िंू। यि देिो, मै विां पडा था।"िसयार अपना िसर िजुलाते-िुलजाते बोला, "किां? िकस तरि?" मिर ताव मे

आ िया। उसने िकसान का पैर छोड िदया और वि िदिाने लिा िक विां, िकस तरि पडा िुआ था।

िसयार ने िौरन िी िकसान को इिारा िकया िक भाि जाओ! िकसानभािा। भािते-भािते िसयार ने किा, "मिर भैया! अब मै समझ िया िक तमु किां, िकस तरि पडे थे। अब तुम बताओ िक बाद मे कया िुआ?"

मिर छटपटाता िुआ पडा रिा िया और िसयार पर दांत पीसने लिा। वि मन-िी-मन बोला, "कभी मौका िमला, तो मै इस िसयार की चालबाजी को देि लूंिा। आज इसने मझेु ठि िलया िै।

कुछ िदनो के बाद चौमासा िुर िुआ। नदी मे जोरो की बाढ आई। मिर नदी मे जाकर रिने लिा। एक िदन िसयार नदी पर पानी पीने आ रिा था। मिर ने उसे दरू से देि िलया। मिर िकनारे पर पिंुचा और िछपकर दलदल मे बैठ िया। न ििला,

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न डुला। िसिक अपनी दो आंिे िलुी रिीं। िसयार ने मिर की आंिे देि लीं। वि विां से कुछ दरू जाकर िडा रिा और िंसकर बोला:

नदी-नाले के दल-दल को दो आंिे िमलीं।नदी-नाले के दल-दल को दो आंिे िमलीं।

सुनकर मिर ने एक आंि मींच ली। आंिे मटकाते िुए िसयार ने किा:नदी-नाले के दलदल की एक आंि वची।नदी-नाले के दलदल की एक आंि बची।

सुनकर मिर ने दोनो आंिे मीचं लीं। िसयार बोला: ओह िो!नदी-नाले के दलदल की दोनो आंि भी िई।नदी नाले के दलदल की दोनो आंिे भी िई।

मिर समझ िया िक िसयार ने उसको पिचान िलया िै।उसने किा, "कोई बात निीं। आिे कभी देिेिे।"बिुत िदन बोत िए। िसयार किीं िमला निीं।एक बार बिुत पास पिंुचकर िसयार नदी मे पानी पी रिा था। तभी सपाटे के

साथ मिर उसके पास पिंुचा और उसने िसयार की टांि पकड ली।िसयार ने सोचा—‘अब तो बेमौत मर जाऊंिा। इस मिर के ििकंजे मे िंस िया।’

लेिकन वि जरा भी घबराया निीं। उलटे, जोर से ठिाका मारकर िंसा और बोला, "अरे भैया! मेरा पैर पकडो न? पुल का यि िमभा िकसिलए पकड िलया िै।?

मेरा पैर तो यि रिा।" मिर न मिसूस िकया िक सचमचू उससे भलू िो िई। उसने िौरन िी िसयार का पैर छोड िदया िमभे को कचकचाकर पकड िलया।

पैर छूटते िी िसयार भािा। भािते-भािते िसयार ने किा, "मिर भैया, वि मेरा पैर निीं िै। वि तो िमभा िै। देिो मेरा पैर तो यि रिा!"

ििर िसयार ने उस नदी पर पानी पीना बनद कर िदया। मिर ने बिुत राि देिी। िदन-रात पिरा िदया। पर िसयार नदी पर कयो आने लिा? अब कया िकया जाये?

नदी-िकनारे एक अमराई थी। विां िसयार अपने सािथयो को लेकर रोज आम िाने पिंुचता था। मिर ने सोचा िक अब मै अमराई मे जाकर िछपूं। एक िदन वि डाल पर पके आमो के बडे-से ढेर मे िछपकर बैठा। िसयार को आता देिकर उसने अपनी दोनो आिे िुली रिीं।

िमेिा की तरि िसयार अपने सािथयो को लेकर अमराई मे पिंुचा। िौरन िी उसकी िनिाि दो आंिो पर पडीं उसने िचललाकर किा, "भाईयो, सनुा! यि बडा ढेर सरकार का िै। इसके पास कोई जाना मत। सब इस दसूरे ढेर के आम िाना।"

इस बात भी िसयार पकड मे निीं आया। मिर ने सोचा िक अब तो मै इस िसयार की िुिा मे िी जाकर बैठ जाऊं। विां तो यि पकड मे आ िी जायिा।

एक बार िसयार को बािर जाते देिकर मिर उसकी िुिा मे जा बैठा। सारी रात जिंल मे घूमने-भटकने के बाद जब सबेरा िोने को आया, तो िसयार अपनी ििुा मे लौटा। िुिा मे घुसते िी उसने विां मिर की दो आंिे देिीं। िसयार ने किा, "वाि-वाि, आज तो मेरे घर मे दो दीए जल रिे िै।" मिर ने अपनी एक आंि बनद कर ली। िसयार बोला, "अरे रे, एक दीया बुझ िया।" मिर ने अपनी दोनो आंिे बनद कर लीं।

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िसयार ने किा, "वाि, अब तो दोनो िी दीये बुझ िए। अब इस अधेंरी िुिा मे कौन जाय! िकसी दसूरी िुिा मे चला जाऊं।" िसयार चला िया। आििर मिर उकताकर उठा और वापस नदी मे पिंुच िया।

िसयार ििर कभी मिर की पकड मे निीं आया।

िट ड ड ा ज ोि ी

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एक थे जोिी। वे जयोितष तो जानते निीं थे, ििर भी िदिावा करके कमाते और िाते थे। एक िदन वे अपने िांव से दसूरे िांव जाने के िलए रवाना िुए। रासते मे उनिोने देिा िक दो सिेद बैल एक िेत मे चर रिे िै। उनिोने यि बात अपने धयान मे रि ली।

जोिीजी िांव मे पिंुचे और एक पटेल के घर ठिरे। विां उनसे िमलने एक िकसान आया। उसके साथ िी उसकी घरवाली भी आई। िकसान ने जािीजी से किा, "जोिी मिाराज! िमारे दो सफेद बलै िो िए िै। कया आप अपना पोथी-पिा देिकर िमको बता सकेिे िक वे िकस तरि िए िै?"

जोिीजी कुछ बुदबुदाए। ििर एक बिुत परुाना सडा-सा पचंांि िनकालकर देिा और किा, "पटेल! तुमिारे बलै पिशमी िसवान वाले िलां िेत मे िै। विां जाकर उनको ले आओ।" जब पटेल उस िेत मे पिंुचा, तो विां उसे अपने बैल िमल िए। पटेल बिुत ििु िुआ और उसने जोिीजी को भी ििु कर िदया।

दसूरे िदन जोिीजी की परीका करने के िलए मकान-मािलक ने उनसे पूछा, "मिाराज" अिर आपकी जयोितष िवदा सचची िै, तो बजाइए िक आज िमारे घर मे िकतनी रोिटयां बनी थी?ं जोिीजी के पास कोई काम तो था निीं, इसिलए तबे पर डाली जाने वाली रोिटयो को वे ििनते रिे थे। ििनती तेरि तक पिंुची थी। इसिलए अपनी िवदा का थोडा िदिावा करने के बाद उनिोने किा, "पटेल! आज तो आपके घर मे तेरि रोिटयां बनी थीं।" सनुकर पटेल को बडा अचरज िुआ।

इन दो घटनाओं से जोिी मिाराज को नाम सारे िांव मे िैल िया, और िांव के लोि उनके पास जयोितष-सबंंधी बाते पूछने के िलए आने लिे। उनिीं िदनो राजा की रानी का नौलिा िार िो िया। जब राजा ने जोिीजी की कीित क सुनी,तो उनिोने उनको बुलवाया।

राजा ने जोिी से किा, "सनुो, िटडडा मिाराज! अपने पोथी-पि मे देिकर बताओ िक रानी का िार किां िै या उसको कौन ले िया िै? अिर िार िमल िया तो िम आपको िनिाल कर देिे।"

जोिीजी घबराए। ििरे सोच मे पड िए। राजा ने किा, "आज की रात आप यिां रििए। और सारी रात सोच-समझकर सबुि बताइए। याद रििए िक अिर आपकी बात िलत िनकली, तो आपको कोलिु मे पेरकर आपका तेल िनकलवा लूंिा।"

रात बयालू करने के बाद िटडडा जोिी तो िबसतर मे लेट िए। लेिकन उनिे निीं आई। मन मे डर था िक सबेरा िोते िी राजा कोलिु मे पेराकर तेल िनकालेिा। वि पडे-पडे नींद को बलुा रिे थे। कि रिे थे, "ओ नींद रानी आओ! ओ, नींद रानी आओ!"

बात यि थी िक राजा की रानी के पास नींद रानी नाम की एक दासी रिती थी। और उसी ने रानी का िार चुराया था। जब उस दासी ने िटडडा जोिी को नींद रानी आओ, नींद रानी आओ’ किते सुना, तो वि एकदम घबरा िई। उसे लिा िक अपनी िवघा िक बल से िी िडडडा जोिी को उसका नाम मालूम िो िया िै।

बच िनकलने के िवचार से नींदरानी ने िार िटडडा जोिीजी को सौप देने का िनशय कर िलया। वि िार लेकर जोिीजी के पास पिंुची और बोली, "मिाराज! यि

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चुराना िुआ िार आप संभािलए। अब मेरा नाम िकसी को मत बताइए। िार का जो करना िो, कीिजए।"

िटडडा जोिी मन-िी-मन ििु िो िए। और बोले, "यि अचछा िुआ। ििर िटडडा जोिी ने नींद रानी से किा, "सुनो यि िार अपनी रानीजी के कमरे मे पलंि के नीचे रि आओ।"

सबेरा िोने पर राजा ने िटडडा जोिी को बलुा भेजा। जोिीजी ने अपनी िवदा का िदिावा करते िुए एक-दो सचचे-झूठे शोक बोले और ििर अपनी अंििुलयो के पोर ििनकर और िोठ ििलाकर अपना लमबा पिा िनकाला और किा, "राजाजी! मेरी िवदा किती िै िक रानी का िार किीं िमु निीं िुआ िै। आप तलाि करवाइए। िार रानी के कमरे मे िी उनके पलंि के नीचे िमलना चाििए।"

तलाि करवाने पर िार पलंि के नीचे िमल िया।राजा िटडडा जोिी पर बिुत ििु िो िया और उसे िूब इनाम िदया।िटडडा जोिी की और परीका लेने के िलए राजा ने एक तरकीब सोची।

एक िदन राजा िटडडा जोिी को अपने साथ जिंल मे ले िए। जोिीजी जब इधर-उधर देि रिे थे, तब उनकी िनिाि बचाकर राजा ने अपनी मटुठी मे एक िटडडा पकड िलया। ििर मुटठी िदिाकर िटडडा जोिी से पूछा, "िटडडाजी, कििए, मेरी इस मटुठी मे कया िै? याद रििए, िलत किेिे, तो जान जायि!"

िटडडा जोिी घबरा िए। उनको लिा िक अब सारा भेद िुल जायिा और राजा मुझे डालेिा। घबराकर अपनी िवदा की सारी िकीकत राजा से कि देने ओर उनसे मािी मांि लेने के इरादे से वे बोले:

टपटप पर से तेरि ििने।राि चलते िदिे बैल।‘नींद रानी ने सौपा िार।राजा, िटडडे पर कयो यि मार?

जैसे िी िटडडा जोिी ने यि किा वैसे िी राजा को भरोसा िो िया िक जोिी मिाराज तो सममुच सचचे जोिी िी िै। राजा ने अपनी मटुठी मे रिे िटडडे को उडा िदया और किा, "वाि जोिीजी, वाि! आपने तो कमाल कर िदया।"

िटडडे जोिी मन-िी-मन समझ िए िक इधर मरते-मरते बचे, और उधर सचचे जोिी बने!

ििर तो राजा ने जोिीजी को भारी इनाम िदया और उनको सममान के साथ िबदा िकया।

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राज ा ,

मै तो बडभ ाि ी

एक थी िचिडया। एक िदन दाना चुि रिी थी िक उसे एक मोती िमला। िचिडया ने मोती नाक मे पिन िलया और इतराती-इतराती पेड की एक डाल पर जो बैठी। तभी उधर से एक राजा िनकला। राजा को देिकर िचिडया ने किा:राजा, मै तो िंू बडभािी।मेरी नाक मे िनमलक मोती।राजा, मै तो िंू बडभािी।मेरी नाक मे िनमलक मोती।

राजा मन-िी-मन िीज उठा। लेिकन उस िदन िबना कुछ किे-सुने वि अपनी कचिरी मे चला िया। दसूरे िदन जब राजा कचिरी मे जा रिा था। िचिडया ने ििर किा:

राजा, मै तो िंू बडभािी।मेरी नाक मे िनमलक मोती।राजा, मै तो िंू बडभािी।मेरी नाक मे िनमलक मोती।

इस बार राजा बिुत िुससा िो िया। राजा ने लौटकर िचिडया को पकड िलया ओर उसकी नाक मे से मोती िनकाल िलया। िचिडया,भला राजा से कयो डरने लिी? उसने किना िुर िकया:

राजा भित िभिारी।

मेरा मोती ले िलया।

राजा भित िभिारी।

मेरा मोती ले िलया।

राजा और अिधक िुससा िुआ? उसने किा, "कया मै िभिारी िंू? म ैतो राजा िंू। मुझे िकस बात की कमी िै? दे दो, िचिडया का उसका मोती।"राजा ने िचिडया को मोती दे िदया।इस पर िचिडया ने किना िुर िकया:

राजा मझुसे डर िया।

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मेरा मोती मुझको दे िदया।राजा मझुसे डर िया।मेरा मोती मुझको दे िदया।

अब तो राजा को बिुत िी बुरा लिा। उसने किा, "अरे, यि कया कर रिी िै? यि अभाििन िचिडया, छोटा मुिं इतनी बडी बात कैसे कि रिी िै!" राजा ने िचिडया की पकडवा िलया। उसका िसर मुंडवा िदया और उस पर चूना पुतवाकर उसे बािर िनकाल िदया।

िचिडया नेकिा, "राजा को और राजा के पूरे घर का िसर न मुडंवाऊं, तो मेरा नाम िचिडया निीं।"

ििर िचिडया िकंर के मिंदर मे जाकर बैठ िई। राजा रोज िकंर के दिनक करने आते और किते, "िे िकंर भिवान! भला िकजीए!"

रोज की तरि राजा दिनक करने आए और िकंर के आिे िसर झुकाकर बोले,

"िे िकंर भिवान! भला कीिजए!"

तभी िचिडया बोली, "निीं करिां।"राजा तो सोच मे पड िए। उनिोने ििर िसर झुकाया और बोले, "िे भिवान!

मुझसे कोई कसूर िुआ िो तो माि कीिजए! आप जो किेिे, म ैकरंिा। िे भिवान!

मेरा भला कीिजए!"

िचिडया बोली, "राजा! तुम और तुमिारा सारा घर िसर मुडंवाए, िसर पर चनूा पुतवाए और मेरे पास आए, तो मै तुमिारा भला करंिा।"दसूरे िदन राजा ने और उसके पूरे घर ने िसर मुडंवाया, िसर पर चूना पुतवाया और सब मिंदर मे आए। आकर सबने किा, "िे िकंर भिवान! िमारा भला कीिजए!"

इसी बीच िचिडया िुर…र…र करती िुई उडी और बािर जाकर किने लिी: िचिडया एक मुंडाई।राजा का घर मुडंाया। िचिडया एक मुंडाई।राजा का घर मुडंाया।

सुनकर राजा िििसया िया और नीचा मुिं करके अपने मिल मे चला िया।.

बिनया

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औरचो र

एक था बिनया। उसे घी िरीदना था, इसिलए वि घी की कुपपी और तेरि रपए लेकर दसूरे िांव जानेके िलए रवाना िुआ। रासते मे िाम िो िई। जिां पिुचना था, वि िांव दरू था। थोडी िी देर मे अधेंरा छा िया।

बिनये ने अधेंरे मे दरू कुछ देिा। उसके मन मे िक पैदा िुआ िक किीं कोई चोर तो निीं िै! बिनया डर िया पर आििर वि बिनया था।

वि िांसा-िंिारा, मूंछ पर ताव िदया और बोला:अिर तू िै िूटा िमबा।तो मै िंू मरद मछुनदर।अिर तू िै चोर और डाकू।तो ले ये तेरि रपए और कुपपी धर।

बिनया यूं बोलता जाता था, िासंता-िंिारता जाता था, और धीमे-धीमे आिे बढता जाता था।

जब िबलकुल पास पिंुच िया, तो देिा िक विां तो पेड का एक ठंठ िडा था। बिनये ने चनै की सासं ली।·

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ििलिरीबा ई

एक बिुढया थी। एक बार उसकी िथेली मे िोडा िुआ। जब िोडा िूटा, तो उसमे से एक ििलिरी िनकली। बिुढया ने ििलिरी के िलए पेड पर एक झोली बाधं दी और उसमे उसको सलुा िदया। घर का काम करते-करते बिुढया कभी इधर जाती, कभी उधर जाती, और ििलिरी को झलाते-झुलाते लोर िाती:िाथ के लूिंी िजार। पैर के लूंिी पांस सौ। नाक के लूिंी नौ सौ।ििर भी अपनी ििलिरीबाई को धरम रीित से दंिूी।सो जाओं, ििलिरीबाई, सो जाओं।

एक िदन पास के िांव का एक राजा ििकार के िलए िनकला। बिुढया की कुिटया के पास से जाते-जाते उसने ििलिरीबाई की लोरी सुनी। राजा सोचने लिा—‘भला, यि ििलिरीबाई कैसी िोिी? जब बिुढया इसके िलए इतने अिधक रपए मांि रिी िै, तो जरर िी ििलिरीबाई बिुत रपवती िोिी!’

राजा ने ििलिरीबाई से बयाि करने का िवचार। राजा बिुढया के पास िया, और उसने बुिढया से किा, "मांजी, मांजी! आप यि कया िा रिी िै? आपकी ििलिरी किां िै? मझुको अपने बेटी िदिा दो। मै उससे बयाि करना चािता िंू।"

बुिढया बोली, "भयैा! आप तो राजा िै। भला आप ििलिरी से कैसे बयाि करेिे? वि तो जानवर की जान िै। लोरी तो मै इस ििलिरीबाई के िलए िाती िंू। मेरी दसूरी बेटी निी िै।"

राजा ने बुिढया की बात निी मानी। उसने किा, "मांजी, भले िी आपकी ििलिरीबाई जानवर िो! मै तो उसी से बयाि करंिा।"

सुनकर बुिढया बोली, "तो जाइये, रपए ले आइये। आप मझेु मेरा यि कुलिड भरकर रपये देिे, तो मै अपनी बेटी का बयाि आपसे कर दंिूी।"

राजा रपए लेने िया। बुिढया लोिभन थी। ढेर सारे रपए लेने की एक तरकीब उसने सोच ली। एक बडा-सा िडढा िोदा। िडढे पर कोठी रि दी। कोठी पर एक मटका रिा। मटके पर ििरी रिी और ििरी और कुलिड रि िदया। ऊपर से नीचे तक सबके पेदो मे छेद बना िदया।

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राजा आया। राजा के लोि कुलिड मे रपए डालने लिे, पर कुलिड तो भरता िी न था। आििर जब बिुत सारे रपए डाल िदये िए तो कुलिड भर िया। ििर बुिढया ने ििलिरीबाई का बयाि राजाक के साथ कर िदया।

राजा ििलिरीबाई को बयािकर अपने घर ले आया। राजा ने ििलरीबाई के िलए सोने का एक बिढया िपंजर बनवाया, और उसे अपने मिल की सांतवीं मंिजल पर टंिवा िदया। राजा का िुकम िुआ िक विां कोई जाया निी। सब सोचने लिे िक राजा िकसे बयािकर लाये िै? ििलिरीबाई को रोज बिढया-बिढया दाने डाले जाते थे। ििलिरीबाई दाने िाती और अपने िपंजरे मे कूदा करती। राजा रोज सुबि िाम ििलिरीबाई से िमलने जाता। एक बार राजा के दीवान ने जानना चािा िक रानी कोन िै? दीवान ने परीका करने की बात सोची और राजा से पूछा, "राजा जी, राजा जी! कया आपकी रानी कुछ काम करना जानती िै?"

राजा ने किा, "िां जानती िै।"दीवान ने पूछा, "कया रानी धान मे से चावल तैयार कर देिी?" राजा ने िां

कि, और धान की वि टोकरी ििलिरीबाई के पास रि दी। ििलिरीबाई समझ िई। उसने अपने पैने दांतो से धान के िछलके इस िूबी क साथ िनकाले िक एक भी दाना टूटा निी और एक िी रात मे सारी टोकरी चावलो से भर दी।

सवेरे राजा टोकरी दीवान के पास ले िए। चावल देिकर दीवान तो दंि रि िया! एक बार और रानी की परीका लेने के िवचार से दीवान ने पूछा, "राजा जी! कया आपकी रानी िीली िमटटी पर िचिकारी कर सकती िै?"

राजा ने किा, "िां, इसमे कोन बडी बात िै?"

दीवान ने एक कमरे मे िीली िमटटी तैयार करवा दी ओर राजा से किा, "रात को रानीजी इस पर अपनी िचिकारी करे।"

ििलिरीबाई अपनी दसूरी सब सिेिलयो का बलुा लाई और ििर सब ििलििरयो ने कमरे मे इधर-से-उधर उधर-से-इधर दौडने की धमू मचा दी। सवेरा िोते-िोते तो िमटटी पर बिढया िचिकारी तैयार िो िई। सबेरे सारी िचिकारी देिकर दीवान तो ििरे िवचार मे डूब िया। उसने किा, "सचमुच रानी तो बिुत िी चतुर िै।"

बाद मे एक बार राजा को दसूरे िांव जाना पडा। राजा ने िपजरे मे दाना-पानी रि िदया। राजा को लौटने मे देर िो िई और िपंजरे का दाना-पानी ितम िो िया। ििलिरीबाई को बिुत पयास लिी। िले मे कुलिड बांध कर वि कंुए पर पानी भरनेिई। जब वि कंुए पर िडी -िडी पानी भर रिी थी, उसी समय ऊपरसे िकंर-पावतक ी का रथ िनकला।

िंकर ने पूछा, "पावतक ी जी! आप जानती िै, यि ििलिरी कौन िै?"

पावतक ी ने किा, "निी।"िंकर बोले, "यि तो एक सी िै। इसे एक देव का िाप लिा िै, इसिलए इसको

ििलिरी क जनम लेना पडा िै।"पावतक ी को दया आ िई, और उनिोने िकंर से िवनती की िक जैसे भी बने, वे

ििलिरी को ििर से सी बना दे। जसेै िी िंकर ने ऊपर सेपानी िछडका, वसेै िी ििलिरी सोलि साल की सुनदरी बन िई। सनुदरी बनने के बाद ििलिरीबाई राजा के मिल मे पिुची। जब राजा घर लौटे तो उनको सारा िाल मालमू िुआ। राजा बिुत िुि िुआ और वे आराम से रिने लिे।·

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अललम-तललम करता िंू

एक था कौआ, और एक थी मैना। दोनो मे दोसती िो िई।मैना भली ओर भोली थी, लेिकन कौआ बिुत चंट था।मैना ने कौए से किा, "कौए भयैा! आओं, िम िेत जोतने चले। अनाज अचछा

पक जायेिा, तो िमको साल भर तक चिुने निी जाना पडेिा, और िम आराम के साथ िाते रिेिे।"

कौआ बोला, "अचछी बात िै। चलो चले।"मैना ओर कौआ अपनी-अपनी चोच से िेत िोदने लिे।कुछ देर बाद कौए की चोच टूट िई। कौआ लिुार के घर पिुचा और विां

अपनी चोच बनवाने लिा। जाते-जाते मैना से किता िया, "मैना बिन! तुम िेत तैयार करो। मै चोच बनावाकर अभी आता िंू।"

मैना बोली, "अचछी बात िै।"ििर मैना ने सारा िेत िोद िलया, पर कौआ निी आया। कौआ की नीयत िोटी थी। इसलए चोच बनवा चकुने के बाद भी वि काम से

जी चुराकर पेड पर बैठा-बैठा लिुार के साथ िपिप करता रिा। मनैा कौए की बाट देिते-देिते थक िई। इसिलए वि कोए को बुलाने िनकली। जाकर कौए से किा, "कौए भैया, चलो! िेत सारा िुद चकुा िै। अब िम िेत मे कुछ बो दे।"कौआ बोला

अललम-टललम करता िंू।चोच अपनी बनवाता िंू।मैना बिन, तुम जाओं, मै आता िंू।

मैन लौट िई ओर उसने बोना िुर कर िदया। मैना ने बिढया बाजरा बोया। कुछ िी िदनो के मे वि िूब बढ िया।

इस बीच नींद ने िनराने का समय आ पिुचा। इसिलए मैना बिन ििर कौए को बुलाने िई। जाकर कौए से किा, "कौए भैया! चलो, चलो बाजरा बिुत बिढया उिा िै। अब जलदी ि िनरा लेना चाििए, निी तो िसल को नुकसान पिंुचेिा।"

पेड पर बैठे-बेठे िी आलसी कौआ बोलाअललम-टललम करता िंू। चोच अपनी बनवाता िंू। मैना बिन, तुम जाओं, मै आता िंू।

मैना वापस आ िई। उसने अकेले िी सारे िेत की िनराई कर ली।

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कुछ िदनो के बाद िसल काटने का समय आ लिा। इसिलए मनैा ििर कौए को बुलाने िई। जाकर कौए से किा, "कौए भैया! अब तो चलो िसल काटने का समय िो चुका िै! देर करके काटेिे, तो नुकसान िोिा।"

कौआ बोलाअललम-टललम करता िंू।चोच अपनी बनवाता िंू।मैना बिन, तुम जाओं मै आता िंू।

मैना तो िनराि िोकर वापस आ िई। और िसुसे-िी-िुससे मेअकेली िेत की सारी िसल काट ली।

इसके बाद मनैा ने बाजरे का के भुटटो मे से दाने िनकाले। एक तरिबाजरे का ढेर लिा िदया और दसूरी तरि भूसे का बडा-सा ढेर बनाकर उसके ऊपर थोडा बाजरा िैला िदया।

बाद मे वि कौए को बुलाने िई। जाकर बोली, "कौए भयैा! अब तो तुम चलोिे? मैने बाजरे की ढेिरयां तैयार कर ली िै। तुमको जो ढेरी पसनद िो, तमु रि लेना।"

कौआ यि सोचकर ििु िो िया िक िबना मेिनत के िी उसको बाजरे का अपना ििससा िमलेिा।

कौए ने मनैा से किा, "चलो बिन! मै तैयार िंू। अब मेरी चोच अचछी तरि ठीक िो िई िै।"

कौआ और मैना दोनो िेत पर पिंुचे। मैना ने किा, "भैया! जो ढेरी तुमको अचछी लिे, वि तुमिारी।"

बडी ढेरी लेने के िवचार से कौआ भूसे वाले ढेर पर जाकरबैठ िया। लेिकन जैसे िी वि बैठा िक उसके पैर भूसे मे धंसने लिे, और भूसा उसकी आंिो, कानो और मुंि मे भर िया। देिते-देिते कौआ मर िया!

बाद मे मैना सारा बाजरा अपने घर ले िई।·

चंदा भाई की च ांदन ी

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एक थे राम िसिं भाई और दसूरे थे चनदाभाई। दोनो जािीरदार। रामिसंि भाई िावं मुििया, और पाच-सात िांवो के मािलक। चनदाभाई के पास िसिक दो िल की जमीन। रामिसिं भाई का अपना राज-दरबार था। जो भी आता, चौपाल पर बैठता। िुकका-पानी पीता। िाना िाता और घर जाता।

चनदाभाई के घर मे तो कुछ भी निी था। घर के दरवाजे आया िुआ भिूा िी लौट जाता। लेिकन चनदाभाई जबान के बिुत तेज-तरारक थे। एक बिढया घोडी रिते थे। सिेद कपडे पिनते थे, और िावं मे बैठकर िपपे िांका करते थे। जिां भी पिुच जाते, मेिमान के ठाठ से रिते और मौज करते।चनदाभाई ने रामिसंि भाई के साथ दोसती कर ली। रामिसंि भाई को कमी िकस बात की थी? चनदाभाई रामिसंि भाई के घर साल मे दो-तीन मिीने रिते। िाते-पीते और चैन की बंसी बजाते। लौटते समय बिुत आगि करके किते, रामिसंि भाई! अब तो एक बार आप मेरे घर जरर िी पधािरए!"

संयोि से एक बार रामिसंि भाई को किीं िरशतेदारी मे जाना िुआ। रासते मे चनदाभाई का िांव पडा। रामिसंि भाई ने सोचा—चनदाभाई बार-बार आगि करके किे रिते िै, पर िम कभी इनके घर जाते निीं। चलूं, कयो न इस बार मै इनका िढ भी देि लूं?"

रामिसंि भाई ने ओर उनके भतीजो ने अपनी घोिडयां चनदाभाई के िावं की ओर मोड दी। िकसी ने चनदाभाई को िबद दी। वि परेिान िो िये। सोचने लिे—रामिसिं भाई के घर तो मै िूब िाता-पीता रिा िंू लेिकन मै उनको ििलाऊंिा कया?

घर मे तो चिेू डणड पेल रिे थे।इतने मे रामिसंि भाई की घोडी ििनििनाई और रामिसंि भाई ने आवाज

लिाई, "चनदाभाई किां िै?" बेचारे चनदाभाई कया मुंि िदिाते? वे तो ठुकरानी की साडी ओढकर सो िए। ठाकुर रामिसंि िढ के अनदर आ पिुचे। पूछा, "कया ठाकुर चनदाभाई घर मे िै?"

एक बिन ने बािर िनकलकर किा, "दरबार तो जूनािढ की जािीर के काम से की िए िै। कल-परसो तक लोटेिे।"

रामिसंि भाई के मन मे िक पैदा िुआ। सोचा बात कुछ िलत लिती िै। कल िी तो िबर िमली थी। िक चनदाभाई िांव मे िी िै।

ठाकुर रामिसंि ने किा, "अचछी बात िै। लेिकन घर के अनदर ये सोए कौन िै? कोई बीमार तो निी िै?"

बिन बोली, "ये तो जसोदा भुवा िै। िसर दिु रिा िै, इसिलए सोई िै।"ठाकुर रामिसंि ने सोचा—जसोदा भुवा के कुिल समाचार तो पूछ िी ले। घर

मे पिुचकर उनिोने साडी ऊपर उठाई और पछूा, "कयो भुवा जी! िसर कयो दिु ्रिा िै?" तभी देिते कया िै िक भुवाजी की जिि विां मूंछो वाले चनदाभाई लेटे पडे िै!

देिकर रामिसंि भाई तो दंि रि िए। िििसया भी िए। उनके साथ एक चारण था। उससे रिा निी ियां। उसकी जीभ कुलबलुाई वि बोला:चनदाभाई की चांदनी।और रामजी भाई की रोटी।जसोदा भुआ के मूछें आई।

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घडी कलजुि की िोटी।·

मणडल दारा पकािित बालोपयोिी सा िितय

·िचिडया जीती राजा िारा·जब दीदी भूत बनी·कुनती के बेटे·सेवा करे सो मेवा पावे·मूरिो की दिुनया·दिुनया के अचरज

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·सचाई का िल·बौने का वरदान·युवक की चतुराई·अनोिी सूझबूझ·मेढक और ििलिरी·किनी किंू, भयैा·मां जाया भाई·सात पूंछोवाला चूिा·चंदाभाई की चांदनी□ □

ससता सा िितय मणडल पकािन