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www.ishwarpooja.com सेवा म" Sevaa Mein : Pooja, Ishwar and Jay Sharma 1 Shri Satyanarayan Vrat Katha and Aarti in Hindi !ी गणेशाय नमः !ी गु#$यो नमः !ी सर#व%यै नमः मातृिपतृ चरण कमले%यो नमः !ी स"यनारायण !त कथा एवं आरती !थमो अ"याय एक समय नैिमषार(य तीथ$ म" शौनक आ"द सभी ऋिषय% तथा मुिनय& ने पुराणशा’ क" वे#ा !ीसूतजी महाराज से पूछा - महामुने ! िकस !त अथवा तप#या से मनोवांिछत फल !ा# होता है , उसे हम सब सुनना चाहते ह" !ी सूतजी बोले - इसी !कार देविष& नारदजी क" !ारा भी पूछे जाने पर भगवान !ीकमलापितजी ने उनसे जैसा कहा था, उसे कह रहा !ं , आप लोग सावधान होकर सुन$ एक समय योगी नारदजी लोग$ क" क"याण क" कामना से िविवध लोक$ म" !मण करते !ए पृ#वीलोक म" आये और यहां उ"ह$ने अपने कम#फल क" अनुसार नाना योिनय% म" उ"प$ सभी !ािणय& को अनेक !कार क" !"श, द":, भोगते !ए देखा तथा िकस उपाय से इनक$ द"ख$ का

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    सेवा म"  Sevaa  Mein  :  Pooja,  Ishwar  and  Jay  Sharma   1  

    Shri Satyanarayan Vrat Katha and Aarti in Hindi

    ॐ !ी गणेशाय नमः । ॐ !ी गु#$यो नमः । ॐ !ी सर#व%यै नमः । मातृिपतृ चरण कमले%यो नमः ।

    !ी स"यनारायण !त कथा एवं आरती

                                                                 

    !थमो अ"याय

    एक समय नैिमषार(य तीथ$ म" शौनक आ"द सभी ऋिषय% तथा मुिनय& ने पुराणशा' क" वे#ा !ीसूतजी महाराज स ेपूछा - महामुन े! िकस !त अथवा तप#या स ेमनोवांिछत फल !ा# होता है, उस ेहम सब सुनना चाहते ह" । !ी सूतजी बोल े- इसी !कार देविष& नारदजी क" !ारा भी पूछ ेजान ेपर भगवान !ीकमलापितजी ने उनस ेजैसा कहा था, उस ेकह रहा !,ं आप लोग सावधान होकर सुन$ । एक समय योगी नारदजी लोग$ क" क"याण क" कामना स ेिविवध लोक$ म" !मण करत े!ए पृ#वीलोक म" आय ेऔर यहा ंउ"ह$ने अपन ेकम#फल क" अनुसार नाना योिनय% म" उ"प$ सभी !ािणय& को अनेक !कार क" !"श, द":ख, भोगते !ए देखा तथा ‘िकस उपाय से इनक$ द"ख$ का

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    सुिन%&चत !प से नाश हो सकता है’, ऐसा मन म" िवचार करक# वे िव#णुलोक को गये। वहा ंचार भुजाओ ंवाल ेशंख, च", गदा, प" तथा वनमाला स ेिवभूिषत शु#वण& भगवान !ी नारायणजी का दश#न कर उन देवािधदेव क" वे !तुित करन ेलगे। नारद जी बोल े- हे वाणी और मन से पर े!व#प वाल,े अन#तशि'स)प+, आ"द-म"य और अ"त स ेरिहत, िनगु%ण और सकल क"याणमय गणु" स ेस"प$, भ"# क" पीड़ा न" करन ेवाल ेपरमा%मन! आपको नम#कार है। !तुित सुनने क" अन#तर भगवान !ीिव%णु जी ने नारद जी से कहा - महाभाग ! आप िकस !योजन से यहा ंआय ेह", आपक$ मन म" !या है ? नारद जी बोल े- भगवन ! पृ#वीलोक म" अपन ेपापकम% क" !ारा िविभ$ योिनय% म" उ"प$ सभी लोग ब"त !कार क" !"श$ से द":खी हो रहे ह" । हे नाथ ! िकस लघु उपाय से उनक$ क"# का िनवारण हो सक#गा, य"द आपक$ मेर ेऊपर क"पा हो तो वह सब म" सुनना चाहता ! ं। उस ेबताय% । !ी भगवान ने कहा - हे व"स ! संसार क" ऊपर अनु$ह करन ेक" इ"छा स ेआपने ब"त अ"छी बात पूछी है । िजस !त क" करन ेसे !ाणी मोह स ेमु# हो जाता है, उस ेआपको बताता !,ं सुन$ । हे व"स ! !वग$ और पृ#वीलोक म" द"ल$भ भगवान स"यनारायण का एक महान !त है । आपक$ !नेह क" कारण इस समय म" उस ेकह रहा ! ं। अ"छी !कार िविध-िवधान स ेभगवान स"यनारायणजी का !त करक# मनु$य शी# ही सुख !ा# कर परलोक म" मो# !ा# कर सकता है । भगवान क" ऐसी वाणी सुनकर नारदजी ने कहा - !भो इस !त को करन ेका फल !या है ? इसका िवधान !या है ? इस !त को िकसन ेिकया और इस ेकब करना चािहए ? यह सब िव#तारपूव)क बतलाइय े। भगवान ने कहा - यह !ी स"यनारायणजी !त द":ख-शोक आ"द का शमन करन ेवाला, धन-धा#य क" वृि$ करन ेवाला, सौभा%य और संतान देने वाला तथा सव#$ िवजय !दान करन ेवाला है । िजस-िकसी भी !दन भि# और

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    !"ा से सम#$वत होकर मनु$य !ा#ण% और ब"धुबा"धव' क" साथ धम# म" त"पर होकर *सायंकाल म" भगवान !ीस"यनारायणजी क" पूजा कर े। नैवे% क" !प म" उ"म को#ट क" भोजनीय पदाथ% को सवाया मा#ा म" भि#पूव'क अिप$त करना चािहए । क"ल ेक" फल, घी, द"ध, गे# ंका चूण$ अथवा गे# ंक" चूण$ क" अभाव म" साठी का चूण$, श"र या गुड़ - यह सब यो#य साम$ी सवाया मा#ा म" एक# कर िनवे%दत करनी चािहए । ब"ध-ुबा#धव& क" साथ !ी स"यनारायण भगवानजी क" कथा सुनकर !ा#ण% को भोजन कराना चािहए । भि#पूव'क !साद !हण करक# नृ#य-गीत आ"द का आयोजन कर# । तदन$तर भगवान स"यनारायण का !मरण करत े!ए अपन ेघर को जाय$ । ऐसा करन ेस ेमनु$य& क" अिभलाषा अव#य पूण$ होती है । िवशेष !प स ेकिलयुग म", पृ#वीलोक म" यह सबसे छोटा एवम ्सरल उपाय है । ॥ इित !ी !क#दपुराण ेरेवाख&ड ेस"यनारायण !त कथायाम् !थमो अ"यायः स"पूण&म ्॥

    ि"तीय अ"याय

    सूतजी ने कहा- “हे ऋिषय% ! िज#ह%न ेपहले समय म" इस !त को िकया है उनका इितहास कहता ! ँआप सब !यान से सुन$ । सुंदर काशीपुरी नगरी म" एक अ"यंत िनध$न !ा#ण रहता था । वह !ा#ण भूख और !यास स ेबेचैन होकर पृ#वी पर घूमता रहता था । !ा#ण% से !ेम करन ेवाल े!ी िव#ण ुभगवानजी ने !ा#ण को देखकर एक !दन बूढ़ े!ा#ण का !प धारण कर !ा#ण क" पास जाकर आदर क" साथ पूछा-”हे िव#देव ! तुम िन#य ही द"ःखी होकर पृ#वी पर !य# घूमत ेहो ? तब उस !ा#ण ने कहा - म" िभ#ा क" िलए पृ#वी पर िफरता ! ँ। हे भगवन ! य"द आप इसस ेछ"टकारा पाने का कोई उपाय जानत ेह" तो क"पा कर मुझ ेबताएँ । वृ# !ा#ण का !प धारण िकए !ी िव#णजुी ने कहा- “हे !ा#ण ! !ी स"यनारायण भगवान मनवांिछत फल देने वाल ेह" । इसिलए तुम उनका पूजन करो, इसस ेमनु$य सब द"ःख% से मु# हो जाता है ।” !ा#ण को !त का सारा िवधान बताकर बूढ़ े!ा#ण का

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    !प धारण करन ेवाल े!ी भगवानजी अंत$या'न हो गए । िजस !त को वृ# !ा#ण ने बताया है, म" उसको अव#य क"ँगा, यह िन#चय कर वह !ा#ण घर चला गया । अगले !दन वह ज"दी उठा और !ी स"यनारायणजी का !त करन ेका िन#चय कर िभ#ा माँगन ेक" िलए चल !दया । उस !दन उसको िभ#ा म" ब"त धन िमला, िजसस ेउसन ेपूजा का सामान खरीदा और घर आकर अपन ेबंध-ुबांधव& क" साथ !ी स"यनारायणजी का !त िकया । इसक$ करन ेसे वह !ा#ण सब द"ःख% स ेछ"टकर अनेक !कार क" सुख स"पि%य' स ेयु# !आ । तभी स ेवह िव# हर मास !त करन ेलगा । इसी !कार स"यनारायणजी क" !त को जो शा#िविध क" अनुसार करेगा, वह सब पाप# स ेछ"टकर मो# को !ा# होगा । आग ेभी जो मनु$य पृ#वी पर !ी स"यनारायणजी का !त करेगा वह सब द"ःख% से छ"ट जाएगा । इस तरह नारदजी स ेस"यनारायण भगवान का कहा !आ !त म"ने आपसे कहा । तब ऋिषय% ने कहा- “हे मुनी%वर ! संसार म" इस िव# स ेसुनकर िकस-िकस ने इस !त को िकया | यह हम सब सुनना चाहते ह" । !ी सूतजी ने कहा - “हे मुिनय& ! िजस-िजस !ाणी ने इस !त को िकया है उन सबक$ कथा सुनो । एक समय वह !ा#ण धन और ऐ"वय% क" अनुसार बंध-ुबांधव& क" साथ !त पूजन कर रहा था, िक उसी समय एक लकड़हारा आया । उसन ेलकिड़या ं बाहर रखद" और िव# क" घर म" चला गया । !यास से !याक%ल लकड़हार ेने िव# को !त करत ेदेखा । वह !यास को भूल गया । उसन ेउस िव# को नम#कार िकया और पूछा- “हे िव# ! आप यह िकसका पूजन कर रहे ह" ? इस !त से !या फल िमलता है ? क"पा करक# मुझ ेबताएँ ।” !ा#ण ने कहा - “सब मनोकामनाओ ंको पूरा करन ेवाला यह !ी स"यनारायणजी का !त है । इनक$ ही क"पा से मेर ेयहा ँधन-धा#य आ"द क" वृि$ !ई है ।” िव# स ेइस !त क" बारे म" जानकर वह लकड़हारा ब"त !स# !आ । भगवान का चरणामृत ले और भोजन करन ेक" बाद वह अपन ेघर को चला गया । अगले !दन लकड़हार ेने अपन ेमन म" संक$प िकया िक आज !ाम म" लकड़ी बेचने स ेजो धन िमलेगा उसी स ेभगवान स"यनारायणजी का उ"म !त

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    क"ँगा । मन म" ऐसा िवचार कर वह लकड़हारा लकिड़या ंअपन ेिसरपर रखकर िजस नगर म" धनवान लोग रहते थे, वहा ँगया । उस !दन उस ेउन लकिड़य& क" चौगुने दाम िमले । वह बूढ़ा लकड़हारा अित$स& होकर प"# क"ल,े श"र, शहद, घी, द"ध, दही और गे# ँका चूण$ इ"या%द !ी स"यनारायण भगवान क" !त क" सभी साम$ी लेकर अपन ेघर आ गया । िफर उसन ेअपन ेबंध-ुबांधव& को बुलाकर िविध-िवधान क" साथ भगवान का पूजा और !त िकया । उस !त क" !भाव से वह बूढ़ा लकड़हारा धन-पु# आ"द से यु# !आ और संसार क" सम#त सुख भोगकर वैक$%ठ को चला गया ।” ॥ इित !ी !क#दपुराण ेरेवाख&ड ेस"यनारायण !त कथायाम् ि"तीऽयो अ"यायः स"पूण&म् ॥

    तृतीय अ"याय

    !ी सूतजी ने कहा - “हे !े# मुिनय& ! अब एक और कथा कहता ! ँ। पूव$काल म" उ"कामुख नाम का एक बुि$मान राजा था । वह स"यव%ा और िजतेि%&य था । !ित$दन देव$थान( पर जाता तथा गरीब% को धन देकर उनक$ क" द"र करता था । उसक$ प"नी सुंदर और सती सा#वी थी । भ"शीला नदी क" तट पर उन दोन$ ने !ी स"यनारायण भगवानजी का !त िकया । साधु नामक एक वै#य, राजा को !त करत ेदेख उनस ेपूछन ेलगा - “हे राजन ! भि#यु# िच# स ेयह आप !या कर रहे ह" ? मेरी सुनने क" इ"छा है ।” तब महाराज उ"कामुख ने कहा - “हे साधु वै#य ! म" अपन ेबंध-ुबांधव& क" साथ स"तान क" !ाि$ क" िलए महाशि&मान स"यनारायण भगवानजी का !त व पूजन कर रहा ! ँ।” उसने कहा - “हे राजन ! मुझ ेभी इसका सब िवधान बताइए । म" भी आपक$ कथानुसार इस !त को क"ँगा । मुझ ेकोई संतान नह# है । िव#वास है िक इसस ेिन#चय ही मेर ेयहा ँभी संतान होगी ।” राजा से सब िवधान सुन, !यापार से िनवृ% हो, वह वै#य खुशी-खुशी अपन ेघर आया । वै#य ने अपनी प"नी लीलावती स ेसंतान देने वाल ेउस !त का समाचार सुनाया और !ण िकया िक जब हमारे यहा ँसंतान होगी तब म" इस !त को क"ँगा । एक !दन उसक$ प"नी लीलावती सांसा$रक धम# म" !वृ$ होकर गभ#वती हो गई । उसन ेएक सुंदर क"या को ज"म !दया । क"या का नाम कलावती रखा गया । इसक$ बाद

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    लीलावती ने अपन ेपित को !मरण !दलाया िक आपने जो भगवान का !त करन ेका संक$प िकया था अब आप उस ेपूरा क"िजए । साधु वै#य ने कहा - “हे ि"ये ! म" क"या क" िववाह पर इस !त को क"ँगा ।” इस !कार अपनी प"नी को आ"वासन दे वह !यापार करन ेचला गया । काफ$ !दन$ प"चात वह लौटा तो उसन ेनगर म" स"खय% क" साथ अपनी पु#ी को खेलत ेदेखा । वै#य ने त"काल कलावती क" िलए कोई सुयो%य वर क" तलाश क" । क"चननगर क" एक सुयो%य विणक पु# स ेअपन ेबंध-ुबांधव& सिहत !स#िच& होकर अपनी पु#ी का िववाह उसक$ साथ कर !दया । वै#य िववाह क" समय भी स"यनारायण भगवान का !त करना भूल गया । इस पर !ी स"यनारायण भगवान क" लीला !ई । अपन ेकाय$ म" क"शल साधु नामक वै#य अपन ेजामाता सिहत नाव को लेकर !यापार करन ेक" िलए समु$ क" समीप !"थत र"नसारपुर नगर म" गया । दोन$ ससुर-जमाई राजा चं#क%त ुक" नगर म" !यापार करन ेलगे । एक !दन भगवान स"यनारायणजी क" माया स े!े#रत एक चोर राजा का धन चुराकर भागा जा रहा था । राजा क" द"त$ को अपन ेपीछे आत ेदेखकर चोर ने घबराकर राजा क" धन को उनक$ नाव म" रख कर भाग गया, जहा ँससुर-जमाई थे । जब राजा क" धन को उनक$ नाव म" रखा देखा तो पकड़कर राजा क" समीप जाकर बोल े- “हम ये दो चोर पकड़कर लाए ह", आप आ"ा द"” । राजा ने कारागार म" डालने क" आ"ा दे दी । इस !कार राजा क" आ"ा से उनको क"ठन कारावास म" डाल !दया गया तथा उनका धन भी ले िलया । स"यनारायण भगवानजी क" लीला क" अनुसार साधु वै#य क" प"नी लीलावती व पु#ी कलावती भी घर पर ब"त द":खी !ई । उनक$ घर म" रखा धन चोर ले गए । एक !दन शारी%रक व मानिसक पीड़ा तथा भूख-!यास से अित द":!खत हो भोजन क" िचंता म" कलावती एक !ा#ण क" घर गई । उसन े!ीस$यनारायण भगवान का !त होत ेदेखा । उसन ेकथा सुनी तथा !साद !हण कर रात को घर आई । माता ने कलावती से पूछा - “हे पु#ी ! तू अब तक कहा ँरही व तेर ेमन म" !या है ?” कलावती बोली- “हे माता ! म"ने !ी स"यनारायरण भगवान का !त होत ेदेखा है ।” तब कलावती क" वचन सुनकर लीलावती ने स"यनारायण भगवानजी क" पूजन क" तैयारी क" । उसन ेप"रवार और बंधुओ ंसिहत !ी स"यनारायण भगवानजी का पूजन व !त िकया और वर माँगा िक मेर ेपित और दामाद

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    शी# ही घर लौट आएँ । साथ ही !ाथ$ना क" िक हम सबका अपराध !मा करो । !ी स"यनारायण भगवानजी इस !त स ेसंतु% हो गए । उ"ह$ने राजा चं#क%त ुको !व#न म" दश#न देकर कहा - “हे राजन ! िजन दोन$ वै#य% को तुमने बंदी बना रखा है, वे िनद$ष ह", उ"ह$ !ातः ही छोड़ देना ।” राजा स ेवचन कहकर भगवान अंत$या'न हो गए । !ातःकाल राजा चं#क%त ुने सभा म" सबको अपना !व#न सुनाया और सैिनक& को आ"ा दी िक दोन$ विणक पु#$ को क"द स ेमु# कर सभा म" लाया जाए । दोन$ ने आत ेही राजा को !णाम िकया । राजा ने उनस ेकहा - “हे महानुभाव( ! तु#ह% भावीवश ऐसा क"ठन द"ःख !ा# !आ है । अब तु#ह% कोई भय नह# है, तुम मु# हो ।” ऐसा कहकर राजा ने उनको नए-नए व"ाभूषण दीय ेतथा उनका िजतना धन िलया था उसस ेद"ना लौटाकर आदर स ेिवदा िकया । दोन$ वै#य अपन ेघर को चल !दए । ॥ इित !ी !क#दपुराण ेरेवाख&ड ेस"यनारायण !त कथायाम् तृतीयो अ"यायः स"पूण&म ्॥

    चतुथ% अ"याय

    !ी सूतजी ने कहा - “वै#य और उसक$ जमाई ने मंगलाचार करक# या#ा आरंभ क" और अपन ेनगर क" ओर चल पड़े । उनक$ थोड़ी द"र आग ेबढ़न ेपर दंडी वेषधारी !ी भगवानजी ने उसस ेपूछा - “हे वै#य ! तेरी नाव म" !या है ? अिभमानी विणक हँसता !आ बोला - “हे दंडी ! आप !य# पूछत ेह" ? !या धन लेने क" इ"छा है ? मेरी नाव म" तो बेल और प" ेभरे ह" ।” वै#य का कठोर वचन सुनकर दंडी !प म ेभगवानजी ने कहा - “तु#हारा वचन स"य हो !” ऐसा कहकर वे वहा ँस ेक"छ द"र जाकर समु$ क" िकनार ेबैठ गए । दंडी महाराज क" जान ेक" प"चात वै#य ने िन#यि%या से िनवृ% होने क" बाद नाव को उँची उठी देखकर अचंभा िकया तथा नाव म" बेल-प" ेआ"द देखकर मू#$छ&त हो जमीन पर िगर पड़ा । होश आने पर अ"यंत शोक !कट करन ेलगा । तब उसक$ जामाता ने कहा - “आप शोक न कर# । यह दंडी महाराज का !ाप है, अतः उनक$ शरण म" ही चलना चािहए, तभी हमारी मनोकामना पूरी होगी ।” जामाता क" वचन सुनकर दंडी महाराज क" पास प"ँचा और भि#भाव से !णाम करक# बोला - “म"ने जो आपसे अस#य वचन

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    कह ेथे उसक$ िलए मुझ े!मा कर# ।” ऐसा कहकर वै#य रोने लगा । तब दंडी भगवान बोल े- “हे विणक पु# ! मेरी आ"ा स ेतुझ ेबार-बार द"ःख !ा# !आ है, तू मेरी पूजा से िवमुख !आ है ।” तब उस ने कहा - “हे भगवन ! आपक$ माया स े!"ा आ"द देवता भी आपक$ !प को नह# जान पात,े तब म" अ"ानी भला क"स ेजान सकता ! ँ। आप !स# होइए, म" अपनी साम$य& क" अनुसार आपक$ पूजा क"ँगा । मेरी र"ा क"िजये और पहले क" समान मेरी नौका को धन से भर दीिजय े।” उसक$ भि#यु# वचन सुनकर भगवानजी !स# हो गए और उसक$ इ"छानुसार वर देकर अंत$या'न हो गए । तब ससुर व जामाता दोन$ ने नाव पर आकर देखा िक नाव धन स ेप"रपूण& है । िफर वह भगवान स"यनारायणजी का पूजन कर जामाता सिहत अपन ेनगर को चला । जब वह अपन ेनगर क" िनकट प"ँचा तब उसन ेएक द"त को अपन ेघर भेजा । द"त ने वै#य क" घर जाकर उसक$ प"नी को नम#कार िकया और कहा - “आपक$ पित अपन ेदामाद सिहत इस नगर क" समीप आ गए ह" ।” लीलावती और उसक$ क"या कलावती उस समय भगवान का पूजन कर रही थ" । द"त का वचन सुनकर साधु क" प"नी ने बड़ ेहष# क" साथ स"यदेव का पूजन पूण$ िकया और अपनी पु#ी से कहा - “म" अपन ेपित क" दश#न को जाती !,ँ तू भी काय$ पूण$ कर शी# आना ।” परंत ुकलावती पूजन एव ं!साद छोड़कर अपन ेपित क" दश#न क" िलए चली गई । पर#त ुउसको पित का दश#न !ा# नह# !आ । नौका को ड"बा !आ तथा क"या को रोती !ई देख वै#य द"#खत हो बोला- “हे !भ ु! मुझस ेया मेर ेप"रवार स ेजो भूल !ई है उस े!मा करो ।” उसक$ दीन वचन सुनकर स"यदेव भगवान !स# हो गए । आकाशवाणी !ई - “हे वै#य ! तेरी क"या !साद छोड़कर आई है, इसका पित अ"#य !आ है । य"द वह घर जाकर !साद खाकर लौटे तो इसका पित अव#य िमलेगा ।” आकाशवाणी सुनकर कलावती ने घर प"ँचकर पूजनकर !साद खाया और िफर आकर अपन ेपित क" दश#न िकए । त"प$चात वै#य ने वह# बंध-ुबांधव& सिहत स"यदेव का िविधपूव&क पूजन िकया । वह इस लोक का सुख भोगकर अंत म" !वग$लोक को गया । ॥ इित !ी !क#दपुराण ेरेवाख&ड ेस"यनारायण !त कथायाम् चतुथ% अ"यायः स"पूण&म ्॥

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    पंचम अ"याय

    !ी सूतजी ने आग ेकहा - “हे ऋिषय% ! म" एक और भी कथा कहता ! ँ। !जापालन म" लीन तुंग%वज नाम का एक राजा था । उसन ेभगवान स"यदेव का !साद !याग कर ब"त द"ःख पाया । एक समय राजा वन म" व"य पशुओ ंको मारकर बड़ क" वृ# क" नीचे आया । वहा ँउसन े!वाल% को भि# भाव स ेबंध-ुबांधव& सिहत !ी स"यनारायणजी का !त पूजन करत ेदेखा, परंत ुराजा देखकर भी अिभमानवश न तो वहा ँगया और न ही स"यदेव भगवान को नम#कार ही िकया । जब !वाल% ने भगवानजी का !साद उनक$ सामने रखा तो वह !साद !याग कर अपन ेनगर को चला गया । नगर म" प"ँचकर उसन ेदेखा िक उसका सब क"छ न" हो गया है । वह समझ गया िक यह सब भगवान स"यदेव ने ही िकया है । तब वह उसी !थान पर वापस आया और !वाल% क" समीप गया और िविधपूव&क पूजन कर !साद खाया तो स"यनारायणजी क" क"पा से सब-क"छ पहले जैसा ही हो गया और दीघ$काल तक सुख भोगकर !वग$लोक को चला गया । जो मनु$य इस परम द"ल$भ !त को करेगा !ी स"यनारायण भगवान क" क"पा से उस ेधन-धा#य क" !ाि$ होगी । िनध$न धनी, बंदी बंधन स ेमु# होकर िनभ$य हो जाता है । संतानहीन को संतान !ा# होती है तथा सब मनोरथ पूण$ होकर अंत म" वह बैक$%ठ धाम को जाता है । िज#ह%न ेपहले इस !त को िकया अब उनक$ द"सर ेज"म क" कथा भी सुिनए । शतानंद नामक !ा#ण ने सुदामा क" !प म" ज"म लेकर !ीक$%ण क" भि# कर मो# !ा# िकया । उ"कामुख नाम क" महाराज, राजा दशरथ बन ेऔर !ी रंगनाथ का पूजन कर बैक$%ठ को !ा# !ए । साधु नाम क" वै#य ने धमा$%मा व स"य$ित' राजा मोर$वज बनकर अपन ेपु# को आरे स ेचीरकर मो# को !ा# !आ । महाराज तुंग%वज !वयं-भ ूमन ु!ए । उ"ह$ने ब"त स ेलोग$ को भगवान क" भि# म" लीन कर मो# !ा# िकया । लकड़हारा भील अगले ज"म म" गुह नामक िनषाद राजा !आ, िजसन ेभगवान !ीराम क" चरण$ क" सेवा कर मो# !ा# िकया । ॥ इित !ी !क#दपुराण ेरेवाख&ड ेस"यनारायण !त कथायाम् पंचमो अ"यायः स"पूण&म ्॥

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    सेवा म"  Sevaa  Mein  :  Pooja,  Ishwar  and  Jay  Sharma   10  

    !ी स"यनारायण जी क" आरती

    ऒम ्जय ल"मी रमणा, !वामी जय ल"मी रमणा, स"यनारायण !वामी, जन पातक हरणा ।। र"न जिडत िसंघासन, अ"#त छिब राज,े नारद करत िनरांजन, घंटा !विन बाज े। ऒम ्जय ल"मी रमणा …।।१।।

    !कट भये किल कारन, ि"ज को दरस !दयो, बूढ़ो !ा#ण बनकर, क"चन महल िकयो । ऒम ्जय ल"मी रमणा …।।२।।

    द"ब$ल भील कराल, िजनपर क"पा करी, चं#चूड़ एक राजा, ितनक% िवपित हरी । ऒम ्जय ल"मी रमणा …।।३।।

    वै#य मनोरथ पायो, !"ा तज दीनी, सो फल भो#यो !भुजी, िफर !तुित क"#ह% ।

    ऒम ्जय ल"मी रमणा ।।४।।

    भाव भि# क" कारण, िछन-िछन !प धरयो, !"ा धारण िक#ही, ितनक% काज सरयो । ऒम ्जय ल"मी रमणा …।।५।।

    !वाल बाल संग राजा, बन म" भि# करी, मन वांिछत फल दी#हो, दीनदयाल हरी । ऒम ्जय ल"मी रमणा …।।६।।

    चढ़त !साद सवायो, कदली फल मेवा, धूप-दीप-तुलसी से, राजी स"यदेवा । ऒम ्जय ल"मी रमणा …।। ७ ।।

    !ी स"यानरायण जी क" आरती जो कोई नर गाव,े कहत िशवान&द !वामी मनवांिछत फल पाव े।

    ऒम ्जय ल"मीरमणा ।।८।।